लिंग की परिभाषा, भेद, तथा उदाहरण (Ling Kise Kahte hain), हिन्दी भाषा में संज्ञा के लिंग का प्रभाव उनके विशेषणों तथा क्रियाओं पर पड़ता है। इस दृष्टि से भाषा के शुद्ध प्रयोग के लिए संज्ञा शब्दों के लिंग-ज्ञान अत्यावश्यक हैं। लिंग को कैसे पहचाने? लिंग की परिभाषा क्या है? लिंग किसे कहते हैं और लिंग कितने प्रकार के होते हैं?
हिंदी व्याकरण में आपको एक अध्याय का अध्ययन करना होगा जिसमे आप लिंग का निर्धारण करना सीखोगे की लिंग निर्धारण कैसे किया जाता है? लिंग के बारे में जानने के लिए यह पूरा लेख पढ़िए।
लिंग की परिभाषा, भेद, तथा उदाहरण (Ling Kise Kahte hain)
लिंग किसे कहते हैं?
‘लिंग’ का शाब्दिक अर्थ प्रतीक या चिन्ह अथवा निशान होता है। संज्ञाओं के जिस रूप से उसकी पुरुष जाति या स्त्री जाति का पता चलता है, उसे ही ‘लिंग’ कहा जाता है।
लिंग के दो प्रकार के होते हैं।
- पुलिंग और
- स्त्रीलिंग
निम्नलिखित वाक्यों को ध्यानपूर्वक देखें-
- गाय बछड़ा देती है।
- बछड़ा बड़ा होकर गाड़ी खींचता है।
- पेड़-पौधे पर्यावरण के संतुलित रखते हैं।
- धोनी की टीम फाइनल में पहुँची।
- सानिया मिर्जा क्वार्टर फाइनल में पहुँची।
- लादेन ने पेंटागन को ध्वस्त किया।
- अभी वैश्विक आर्थिक मंदी छायी है।
उपर्युक्त वाक्यों में हम देखते हैं कि किसी संज्ञा का प्रयोग पुलिंग में तो किसी का स्त्रीलिंग में हुआ है।
बड़े प्राणियों (जो चलते-फिरते है) का लिंग-निर्धारण जितना आसान है छोटे प्राणियों और निर्जीवों का लिंग-निर्धारण उतना ही कठिन है। नीचे लिखे वाक्यों में क्रिया का उचित रूप भरकर देखें-
- भैया पढ़ने के लिए अमेरिका …….. हैं। (जाना)
- भाभी बहुत ही लजीज़ भोजन …….. हैं। (बनाना)
- शेर को देखकर हाथी चिग्घाड़ने ….. हैं। (लगना)
- राणा का घोड़ा चेतक बहुत तेज …… । (दौड़ना)
- तनवीर नाट्य-जगत् के सिरमौर ……..। (होना)
- चींटी अण्डे लेकर …….. । (चलना)
- चील बहुत उॅचाई पर उड़ ……… है। (रहना)
- भरी सभा में ……. नाक कट …….। (वह/जाना)
- किताब ………..। (लिखा जाना)
- मेघ बरसने ……….। (लगना)
आपने गौर किया होगा कि ऊपर के प्रथम पाँच वाक्यों को भरना जितना आसान है, नीचे के शेष वाक्यों को भरना उतना ही कठिन। क्यों? क्योंकि, आपको उनके लिंगों पर सन्देह होता है।
इसलिए गए लिंग-निर्धारण के कुछ नियम बनाए है जो इस प्रकार हैं-
नोटः विभिन्न साहित्यकारों और आम जनों के भाषा-प्रयोग के आधार पर नियमों का गठन करते हैं अपने मन से नियम नहीं बनाते। अर्थात् भाषा-संबंधी-नियम उसके प्रयोग पर निर्भर करता है।
प्राणियों के समूह को व्यक्त करनेवाली कुछ संज्ञा पुलिंग हैं तो कुछ स्त्रीलिंग
पुलिंग | स्त्रीलिंग | ||||
---|---|---|---|---|---|
परिवार | कुटुम्ब | संघ | सभा | जनता | सरकार |
दल | गिरोह | झुंड | प्रजा | समिति | फौज |
समुदाय | समूह | मंडल | सेना | ब्रिगेड | मंडली |
प्रशासन | दस्ता | कबीला | कमिटी | टोली | जाति |
देश | राष्ट्र | राज्य | जात-पात | कौम | प्रजाति |
प्रान्त | मुलक | नगरनिगम | भीड़ | पुलिस | नगरपालिका |
प्राधिकरण | मंत्रिमंडल | अधिवेशन | संसद | राज्यसभा | |
स्कूल | कॉलेज | विद्यालय | विधानसभा | पाठशाला | |
विद्यापीठ | विश्वविद्यालय | बैठक | गोष्ठी |
तत्सम एवं विदेशज शब्द हिन्दी में लिंग बदल चुके हैं
शब्द | तत्सम/विदेशज |
महिला | पुॅ0 |
स्त्री0 | किरण |
पुॅ0 | स्त्री0 |
आत्मा | पुॅ0 (आत्मा) |
स्त्री0 | समाधि |
पुॅ0 | स्त्री0 |
देह | पुॅ0 |
स्त्री0 | राशि |
पुॅ0 | स्त्री0 |
देवता | स्त्री0 |
पुॅ0 | ऋतु |
पुॅ0 | स्त्री0 |
विजय | पुॅ0 |
स्त्री0 | वस्तु |
नपुं0 | स्त्री0 |
दुकान | स्त्री0 |
(दूकान) पुॅं0 | आयु |
नपुं0 |
कुछ शब्द उभयलिंगी हैं। इनका प्रयोग दोनों लिंगों में होता है
तार आया है। – तार आई है।
मेरी आत्मा कहती है। – मेरा आतमा कहता है।
वायु बहती है। – वायु बहता है।
पवन सनसना रही है। – पवन सनसना रहा है।
दही खट्टी है। – दही खट्टा है।
साँस चल रही थी। – साँस चल रहा था।
मेरी कलम अच्छी है। – मेरा कलम अच्छा है।
रामायण लिखी गई। – रामायण लिखा गया।
उसने विनय की। – उसने विनय किया।
नोट: प्रचलन में आत्मा, वाय, पवन, साँस, कलम, रामायण आदि का प्रयोग स्त्री0 में तथा तार, दही, विनय आदि का प्रयोग पुल्लिंग में होता है। हमें प्रचलन को ध्यान में रखकर ही प्रयोग में लाना चाहिए।
कुछ ऐसे शब्द है, जो लिंग बदल जाने पर अर्थ भी बदल लेते हैं:
- उस मरीज को बड़ी मशक्कत के बाद कल मिली है। (चैन)
- उसका कल खराब हो चुका है। (मशीन)
- कल बीत जरूर जाता है, आता कभी नहीं। (बीता और आनेवाला दिन)
- मल्लिकनाथ ने मेघदूत की टीका लिखी। (मूल किताब की व्याख्या)
- उसने चन्दन का टीका लगाया। (माथे पर बिन्दी)
- उसने अपनी बहू को एक सुन्दर टीका दिया। (आभूषण)
- वह लकड़ी के पीठ पर बैठा भोजन कर रहा है। (पीढ़ा/आसन)
- उसकी पीठ में दर्द हो रहा है। (शरीर का एक अंग)
- सेठजी के कोटि रूपये व्यापार में डूब गए। (करोड़)
- आपकी कोटि क्या है, सामान्य या अनुसूचित ? (श्रेणी)
- कहते हैं कि पहले यति तपस्या करते थे। (ऋषि)
- दोहे छंद में 11 और 13 मात्राओं पर यति होती है। (विराम)
- धार्मिक लोग मानते हैं कि विधि सृष्टि करता है। (ब्रह्मा)
- इस हिसाब की विधि क्या है ? (तरीका)
- उस व्यापारी का बाट ठीक-ठाक है। (कटखरा)
- मैं कबसे आपकी बाट जोह रहा हूँ। (प्रतीक्षा)
- पूर्व चलने के बटोही बाट की पहचान कर ले। (राह)
- चाकू पर शान चढ़ाया गया। (धार देने का पत्थर)
- हमारे देश की शान निराली है। (इज्जत)
- मेरे पास कश्मीर की बनी एक शाल है। (चादर)
- उस पेड़ में काफी कलम खरीदी है। (कठोर और सख्त भागद्ध
- मैंने एक अच्छी कलम खरीदी है। (लेखनी)
- मैंने आम का एक कलम लगाया है। (नई पौध)
कुछ प्राणिवाचक शब्दों का प्रयोग केवल स्त्रीलिंग में होता है, उनका पुल्लिंग रूप बनता ही नहीं।
जैसे- सुहागिन, सौत, संतति, संतान, सती, सौतन, नर्स, औलाद, पुलिस, फौज, सरकार।
पर्वतों, समयों, हिन्दी महीनों, दिनों, जल-स्थल, विभागों, ग्रहों, नक्षत्रों, मोटी-भद्दी, भारी वस्तुओं के नाम पुल्लिंग हैं।
जैसे- हिमालय, धौलागिरि, मंदार, चैत, वैसाख, ज्येष्ठ, सोमवार, मंगलवार, भारत श्रीलंका, अमेरिका, लट्ठा, शनि, प्लूटो, सागर, महासागर आदि।
भाववाचक संज्ञाओं में त्व, पा, प्रत्यय जुड़े शब्द पुॅ0 और ता, आस, अट, आई, ई प्रत्यय जुड़े शब्द स्त्रीलिंग हैं
पुल्लिंग | स्त्रीलिंग | |||
---|---|---|---|---|
शिवत्व | मनुष्यत्व | मनुष्यता | मिठास | घबराहट |
पशुत्व | बचपन | बनावट | लड़ाई | गर्मी |
लड़कपन | बुढ़ापा | दूरी | प्यास | बड़ाई |
ब्रहापुत्र, सिंधु और सोन को छोड़कर सभी नदियों के नामों का प्रयोग स्त्रीलिंग में होता है।
जैसे- गंगा, यमुना, कावेरी, कृष्णा, गंडक, कोसी आदि।
शरीर के अंगों में कुछ स्त्रीलिंग तो कुछ पुल्लिंग होते हैं:
पुल्लिंग | स्त्रीलिंग | ||||||||
सिर | माथा | बाल | कान | मुँह | आँख | नाक | जीभ | वेणी | चोटी |
मस्तक | ललाट | कंठ | ओष्ठ | दांत | शिखा | दाढ़ी | मूँछ | आँत | गर्दन |
गला | हाथ | पैर | नाखून | भाल | ग्रीवा | ठोड़ी | कमर | कलाई | पीठ |
पेट | टखना | अंगूठा | घुटना | मांस | कोहनी | उंगली | कांख | हड्डी | उंगली |
फेफड़ा | शिरा |
कुछ प्राणीवाचक शब्द नित्य पुल्लिंग और नित्य स्त्रीलिंग होते हैं:
नित्य पुल्लिंग | नित्य स्त्रीलिंग | ||||
---|---|---|---|---|---|
गरूड़ | बाज | पक्षी | दीमक | चील | जूँ |
खग | विहग | कछुआ | मछली | गिलहरी | मैना |
मगरमच्छ | खरगोश | गैंडा | तितली | कोयल | मकड़ी |
बिच्छू | रीछ | जुगनू |
नोट: इनके स्त्रीलिंग-पुल्लिंग रूप को स्पष्ट करने के लिए नर-मादा का प्रयोग करना पड़ता है। जैसे- नर चील, नर मक्खी, नर मैना, मादा रीछ, मादा खटमल आदि।
हिन्दी तिथियों के नाम स्त्रीलिंग होते हैं।
जैसे- प्रतिपदा, द्वितीया, षष्ठी पूर्णिमा आदि।
संस्कृत के या उससे परिवर्तित होकर आए अ, इ, उ प्रत्ययान्त पुॅ0 और नपुं0 शब्द हिन्दी में भी प्रायः पुॅ0 ही होते हैं। जैसे-
जग | जगत् | जीव | मन | जीत | मित्र | पद्य | साहित्य |
संसार | शरीर | तन | धन | मीत | चित्र | गद्य | नाटक |
काव्य | छंद | अलंकार | जल | पल | स्थल | बल | रत्न |
ज्ञान | मान | धर्म | कर्म | जन्म | मरण | कवि | ऋषि |
मुनि | संत | कांत | साधु | जंतु | जानवर | पक्षी |
प्राणिवाचक जोड़ों के अलावा ईकारान्त शब्द प्रायः स्त्री0 होते हैं। जैसे-
कली | नाली | गाली | जाली | सवारी | तरकारी | सब्जी | सुपारी |
साड़ी | नाड़ी | नारी | टाली | गली | भरती | वरदी | सरदी |
गरमी | इमली | बाली |
परन्तु, मोती, दही, घी, जी, पानी आदि ईकारान्त होते हुए भी पुल्लिंग हैं।
जिन शब्दो के अन्त में त्र, न, ण, ख, ज, आर, आय, हों वे प्रायः पुल्लिंग होते हैं। जैसे-
चित्र | रदन | वदन | जागरण | पोषण | सुख | सरोज | मित्र |
सदन | बदन | व्याकरण | भोजन | दुःख | मनोज | पत्र | रमन |
पालन | भरण | हरण | रूख | भोज | अनाज | ताज | समाज |
ब्याज | जहाज | प्रकार | द्वार | श्रृगार | विहार | आहार | संचार |
आचार | विचार | प्रचार | अधिकार | आकार | अध्यवसाय | व्यवसाय | अध्याय |
न्याय |
अपवाद (यानी स्त्री0)
थकन | सीख | लाज | खोज | हार | हाय | लगन | भीख |
खाज | हुंकार | बौछार | गाय | चुमन | चीख | मौज | पुकार |
जयजयकार | राय |
सब्जियों, पेड़ों और बर्तनों में कुछ के नाम पुल्लिंग तो कुछ के स्त्री हैं। जैसे-
पुल्लिंग | स्त्रीलिंग | ||||
शलजम | अदरक | टमाटर | बन्दगोभी | फूलगोभी | भिंडी |
बैंगन | पुदीना | मटर | तोरई | मूली | गाजर |
प्याज | आलू | लहसुन | पालक | मेथी | सरसों |
धनिया | खीरा | करेला | फलियाॅ | फराशबीन | ककड़ी |
कचालू | कद्दू | कुम्हड़ | कचनार | शकरकन्दी | नीम |
कटहल | फालसा | पपीता | बीही | अमलतास | मौसंबी |
कीकर | सेब | बेल | खुबानी | चमेली | बेली, जूही |
जामुन | शहतूत | नारियल | अंजीर | नरगिस | चिरौंजी |
माल्टा | बिजौरा | तेंदु | बल्लरी | लता | बेल, गूठी |
आबनूस | चन्दन | देवदार | पौध | जड़ | बगिया, छुरी |
ताड़ | खजूर | बूटा | भट्ठी | अगीठी | बाल्टी |
वन | टब | पतीला | देगची | कटोरी | कैंची |
कटोरा | चूल्हा | चम्मच | थाली | चलनी | चक्की |
स्टोव | चाकू | कप | थाल | तवा | नल |
चर्खा | बेलन | कुकर |
रत्नों के नाम, धातुओं के नाम तथा द्रवों के नाम अधिकांशतः पुल्लिंग हुआ करते हैं। जैसे-
हीरा | पुखराज | पन्ना | नीलम | लाल | जवाहर | मूंगा |
मोती | सोना | पीतल | तांबा | लोहा | कांस्य | सीसा |
एल्युमिनियम | प्लेटिनम | यूरेनियम | टीन | जस्ता | पारा | पानी |
जल | घी | तेल | सोडा | दूध | शर्बत | रस |
जलजीरा | काढ़ा | कहवा | जूस | कोकाआदि। |
अपवाद (यानी स्त्री0)
सीपी | मणि | रत्ती | चांदी | मद्य | शराब | चाय |
कॉफी | लस्सी | छाछ | शिकंजवी | स्याही | बूँद | धारा |
आदि
आभूषणों में स्त्रीलिंग एवं पुल्लिंग शब्द हैं-
पुल्लिंग | स्त्रीलिंग | |||||
---|---|---|---|---|---|---|
कंगन | कड़ा | कुंडल | आरसी | नथ | तीली | माला |
गजरा | झूमर | बाजूबन्द | बाली | झालर | चूड़ी | बिंदिया |
हार | कांटे | झुमका | पायल | अंगूठी | कंठी | मुद्रिका |
कील | शीशफूल | आभूषण |
किराने की चीजों के नाम, खाने-पीने के सामानों के नाम और वस्तुओं के नामों में पुल्लिंग स्त्रीलिंग इस प्रकार होते हैं।
पुल्लिंग | स्त्रीलिंग | |||||
---|---|---|---|---|---|---|
अदरक | जीरा | धनिया | सोंठ | हल्दी | सौंफ | अजवाइन |
मसाला | अमचूर | अनारदाना | दालचीनी | लवंग (लौंग) | हींग | सुपारी |
पराठा | हलवा | समोसा | इलायची | मिर्च | कालीमिर्च | इमली |
भात | भटूरा | कुल्या | रोटी | रसा | खिंचड़ी | पूड़ी |
चावल | रायता | गोलगप्पे | दाल | खीर | चपाती | चटनी |
पापड़ | लड्डू | रसगुल्ला | पकौड़ी | भाजी | सब्जी | तरकारी |
मोहनभोग | पेड़ | फुल्का | काॅजी | बर्फी | मट्ठी | बर्फ |
रूमाल | कुरता | पाजामा | चोली | अंगिया | जुर्राब | बंडी |
कोट | सूट | मोजे | गंजी | पतलून | कमीज | साड़ी |
जांघिया | दुपट्टा | टोप | धोती | पगड़ी | चुनरी | निक्कर |
गाउन | घाघरा | पेटीकोट | बनियान | लंगोटी | टोपी |
आ, ई, उ, ऊ अन्तवाली संज्ञा स्त्रीलिंग और पुल्लिंग इस प्रकार होती है-
पुल्लिंग | स्त्रीलिंग | |||||||
---|---|---|---|---|---|---|---|---|
कुर्ता | कुत्ता | बूढ़ा | प्रार्थना | दया | आज्ञा | लता | माला | भाषा |
शशि | रवि | यति | कथा | दशा | परीक्षा | पूजा | कृपा | विद्या |
कवि | हरि | मुनि | शिक्षा | दीक्षा | बुद्धि | रुचि | राशि | क्रांति |
ऋषि | पानी | दानी | नीति | भक्ति | मति | छवि | स्तुति | गति |
घी | प्राणी | स्वामी | स्थिति | मुक्ति | रीति | नदी | गठरी | उदासी |
मोती | दही | गुरू | सगाई | चालाकी | चतुराई | चिट्ठी | मिठाई | मूंगफली |
साधु | मधु | आलू | लकड़ी | पढ़ाई | ऋतु | वस्तु | वस्तु | वायु |
काजू | भालू | आंसू | बालू | लू | झाड़ू | बधू |
ख, आई, हट, ता आदि अन्तवाली संज्ञा प्रायः स्त्रीलिंग हैं। जैसे-
राख | भीख | सीख | भलाई | बुराई | ऊंचाई | गहराई |
सच्चाई | आहट | मुस्कुराहट | घबराहट | झुंझलाहट | झल्लाहट | सजावट |
बनावट | मिलावट | रुकावट | थकावट | स्वतंत्रता | पराधीनता | लघुता |
मिगता | शत्रुता | कटुता | मधुरता | सुन्दरता | प्रसन्नता | सत्ता |
भाषाओं तथा बोलियों के नाम स्त्रीलिंग हूआ करते हैं। जैसे-
हिन्दी | संस्कृत | अंग्रेजी | बंगाली | मराठी | तमिल | गुजराती |
तेलुगु | कन्नड़ | मलयालम | सिंधी | उर्दू | अरबी | फारस |
चीनी | फ्रेंच | लैटिन | ग्रीक | ब्रज | बागडू | अपभ्रंश |
प्राकृत | बुंदेली | मगही | अवधी | भोजपुरी | मैथिली | पंजाबी |
अरबी फारसी के अन्य शब्दों में कुछ स्त्रीलिंग तो कुछ पुल्लिंग इस प्रकार होते है-
पुल्लिंग | स्त्रीलिंग | ||||
हिसाब | कबाब | जनाब | दुकान | सरकार | दीवार |
मकान | इनसान | मेहमान | दवा | हवा | दुनिया |
मेजबान | दरबान | अखबार | फिजा | हया | शर्म |
बाजार | दुकानदार | मजा | गरीबी | अमीरी | वफादारी |
वक्त | खत | होश | लाचारी | खराबी | मजदूरी |
जोश | कुदरत | नवाब | लाश | तलाश | कशिश |
जवाब | कशीदाकार | बारिश | शोरिश | कोशिश |
अंग्रेजी भाषा से आए शब्दों का लिंग हिन्दी भाषा की प्रकृति के अनुसार तय होता है।
जैसे-
पुल्लिंग | स्त्रीलिंग | ||||||
---|---|---|---|---|---|---|---|
टेलीफोन | टेलीविजन | रेडियो | ग्राउंड | यूनिवर्सिटी | बस | जीव | फोटो |
स्कूल | स्टूडेंट | स्टेशन | कार | टेन | बोतल | पेंट | मशीन |
पेन | बूट | बटन | पेंसिल | फिल्म | फीस | पिक्चर |
क्रियार्थक संज्ञा पुल्लिंग होती हैं।
जैसे- नहाना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।
टहलना हितकारी होता है।
गाना एक व्यायाम होता है।
नोटः जब कोई क्रियावाची शब्द (अपने मूल रूप में) किसी कार्य के नाम के रूप में प्रयुक्त हो तब वह संज्ञा का काम करने लगता है। इसे ‘क्रियार्थक संज्ञा’ कहते हैं। ऊपर के तीनों वाक्यों में लाल रंग के पद संज्ञा है न कि क्रिया।
द्धन्द्ध समास के समस्त पदों का प्रयोग पुल्लिंग बहुवचन में होता है।
नीचे लिखे वाक्यों पर ध्यान दें-
(i) मेरे माता-पिता आए हैं।
(ii) उनके भाई-बहन शहर में पढ़ते हैं।
लिंग-संबंधी कुछ रोचक और विचारणीय बातें:
हिन्दी भाषा में लिंगों का तंत्र काफी विकृत एवं भ्रामक है क्योंकि एक ही शब्द का एक पर्याय तो स्त्रीलिंग है जबकि दूसरा पुल्लिंग। हिन्दी के भाषाविदों एवं विद्वानों के लिए यह चुनौती भरा कार्य है कि वे मिलजुल कर इस पर विमर्श करें और कोई ठोस आधार तय करें। भारत-सरकार एवं राष्ट्रभाषा-परिषद् को भी सचेतन रूप से इस पर ध्यान देना चाहिए, नहीं तो कहीं यह भाषा अपनी पहचान न खो दे। वर्तमान समय में हिन्दी भाषा का कोई ऐसा कोश नहीं है जो भ्रामक नहीं है।
नीचे लिखे वाक्यों को ध्यानपूर्वक देखें और तर्क की कसौटी पर परखे कि कितनी हास्यास्पद बात है कि यदि एक शब्द जो स्त्रीलिंग है तो उसके तमाम पर्यायवाची शब्द भी स्त्रीलिंग ही होने चाहिए अथवा एक पुल्लिंग तो उसके सभी समानार्थी पुल्लिंग ही हों-
गोली लगते ही शेर की आत्मा निकल गई।
गेली लगाते ही शेर के प्राण निकल गए।
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