March 28, 2024

कारक की परिभाषा, प्रकार, भेद, उदाहरण (Kaarak in hindi)

कारक की परिभाषा, प्रकार, भेद, उदाहरण (Kaarak in hindi) : कारक विषय पर सम्पूर्ण जानकारियां इस पृष्ठ के माध्यम से उपलब्ध करें| यदि आप किसी स्कूल में पढ़ने वाले विधार्थी हैं या फिर आप किसी सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे हैं, या आप हिंदी विषय में आगे की पढ़ाई पूरी कर रहे हैं, तो यह पोस्ट आपके बहुत ज़्यादा काम आने वाली है, और आपको अच्छे अंक प्राप्त भी करवाएगी| इस पोस्ट में हमने लगभग सारी जानकारियां आपके साथ शेयर करने की कोशिश की है| पोस्ट को नीचे की ओर स्क्रॉल करें और कारक के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियां (Kaarak in hindi) उपलब्ध करें|

कारक की परिभाषा, प्रकार, भेद, उदाहरण (Kaarak in hindi)

कारक क्या है?

जो क्रिया की उत्पत्ति में सहायक हो या जो किसी शब्द का क्रिया से संबंध बनाए वह ‘कारक’ है।

जैसे-

माइकल जैक्सन ने पाॅप संगीत को काफी ऊँचाई पर पहुँचाया।
यहाँ ‘पहुँचाना’ क्रिया का अन्य पदों माइकल जैक्सन, पॉप संगीत, ऊँचाई आदि से संबंध है। वाक्य में ‘ने’, ‘को’ और ‘पर’ का भी प्रयोग हुआ है। इसे कारक-चिह्न या परसर्ग या विभक्ति-चिह्न कहते हैं। यानी वाक्य में कारकीय संबंधों को बताने वाले चिन्हों को कारक-चिन्ह अथवा परसर्ग कहते हैं।

हिन्दी में कहीं-कहीं कारकीय चिह्न लुप्त रहते हैं।

जैसे-

घोड़ा दौड़ रहा था। वह पुस्तक पढ़ता है, आदि। (यहाँ‘घोड़े’ ‘वह’ और ‘पुस्तक’ के साथ कारक-चिह्न नहीं है। ऐसे स्थलों पर शून्य चिह्न माना जाता है।

यदि ऐसा लिखा जाय: घोड़ा ने दौड़ रहा था। उसने ने पुस्तक को पढ़ता है। तो वाक्य अशुद्ध हो जाएँगे क्योंकि प्रथम वाक्य की क्रिया अपूर्ण भूत की है। अपूर्णभूत में ‘कर्ता’ के साथ ‘ने’ चिह्न वर्जित है। दूसरे वाक्य में क्रिया वर्तमान काल की है। इसमें भी कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न नहीं आएगा। अब यदि ‘वह पुस्तक को पढ़ता है’ और ‘वह पुस्तक पढ़ता है’ में तुलना करें तो स्पष्टतया लगता है कि प्रथम वाक्य में ‘को’ का प्रयोग अतिरिक्त या निरर्थक हैं; क्योंकि वगैर ‘को’ के भी वाक्य वही अर्थ देता है। हाँ, कहीं-कहीं ‘कों’ के प्रयोग करने से अर्थ बदल जाया करता है।

जैसे-

वह कुत्ता मारता है : जान से मारना
वह कुत्ते को मारता है : पीटना

हिन्दी भाषा में कारकों की कुल संख्या आठ मानी गई है, तो निम्नलिखित हैं-

कारक परसर्ग/विभक्ति
1. कर्ता कारक शून्य, ने ;को, से, द्वाराद्ध
2. कर्म कारक शून्य, को
3. करण कारक से, द्वारा (साधन या माध्यम)
4. सम्प्रदान कारक को, के लिए
5. अपादान कारक से (अलग होने का बोध)
6. संबंध कारक का-के-की, ना-ने-नी, रा-रे-री
7. अधिकरण कारक में, पर
8. संबोधन कारक हे, हो, अरे, अजी
कर्ता कारक ‘‘जो क्रिया का सम्पादन करे, ‘कर्ता कारक’ कहलाता है।’’ अर्थात कर्ता कारक क्रिया (काम) करता है।

जैसे-
आतंकवादियों ने पूरे विश्व में आतंक मचा रखा है। इस वाक्य में ‘आतंक मचाना’ क्रिया है, जिसका सम्पादक ‘आतंकवादी’ है यानी कर्ता कारक ‘आतंकवादी’ है।
कर्ता कारक का परसर्ग ‘शून्य’ और ‘ने’ है। जहाँ ‘ने’ चिह्न लुप्त रहता है, वहाँ कर्ता का शून्य चिह्न माना जाता है। जैसे- पेड़-पौधे में ‘शून्य चिह्न‘ है।
कर्ता कारक में ‘शून्य और ‘ने‘ के अलावा ‘को‘ और से/द्वारा चिह्न भी लगाया जाता है।
जैसे-
उनको पढ़ना चाहिए। उनसे पढ़ा जाता है।
उनके द्वारा पढ़ा जाता है।

कर्ता के ‘ने‘ चिह्न का प्रयोग:

सकर्मक क्रिया रहने पर सामान्य भूत, आसन्न भूत, पूर्णभूत, संदिग्ध भूत एवं हेतुहेतुमद् भूत में कर्ता के आगे ‘ने‘ चिह्न आता है।

जैसे-
मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना। (सामान्य भूत)
मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना है। (आ0 भूत)
मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना था। (पूर्ण भूत)
मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना होगा। (सं0 भूत)
मैंने तो आपको कभी गैर नहीं माना होता। (हेतु ….. भूत)

नीचे लिखे वाक्यों के कर्ता कारकों में ‘ने‘ चिह्न लगाकर वाक्यों का पुनर्गठन करें:

1. मैं उसे इशारा किया; मगर वह बोलता ही चला गया।
2. मैं उसे एकबार पढ़ना शुरू किया तो पढ़ता ही गया।
3. वह कहा था कि उसने चोरी नहीं की है।
4. वह देखा कि पूरा पुल बाढ़ में डूबा है।
5. आँधी अपना विकराल रूप धारण किया।
6. दुश्मन के सैनिक देखा और गोलियाँ बरसाने लगा।
7. मैं तो आपको तभी बताया था।
8. तुम इससे कुछ अलग सोचा।
9. जिस समय आप आवाज दी, मैं तैयार हो चुका था।
10. सच-सच बताओ, तुम उसे किस बात पर पीटे ?
11. पहले वह मुझे गाली दिया फिर मैं।
12. मैं उसे बार-बार समझाया।
13. यह फिल्म मैं कई बार देखी है।
14. पाकिस्तान विश्वकप जीता।
15. इस नौकरी से पहले वह तीन नौकरियाँ छोड़ा है।
16. गाई हरी झंडी दिखाया और गाड़ी चल पड़ीं।
17. वह जाने से पहले भोजन किया था।
18. आप मुझसे पूछे ही नहीं इसलिए मैं नहीं बनाया।
19. रोगी पानी माँगा, मगर नर्स अनसुरी कर दी।
20. उस दिन पिताजी मुझसे पूछे ही नहीं।

‘भूलना’ क्रिया के कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न का प्रयोग नहीं होता।

जैसे-
वह तो भूले थे हमें, हम भी उन्हे भूल गए।
आप अपना संकल्प न भूले होंगे।

‘लाना’ क्रिया भी अपने साथ कर्ता के ‘ने’ चिह्न का निषेध करती है। लाना- ‘ले’ ‘आना’ के संयोग से बनी है। पहले इसका रूप ‘ल्याना’ था, बाद में ‘लाना’ हो गया। इसका अंतिम खंड अकर्मक है, इसलिए इसका प्रयोग होने पर कर्ता कारक में ‘ने’ चिन्ह आता है।

जैसे-

पिताजी बच्चों के लिए मिठाई लाए।
श्यामू पीछे हो लिया।

नहाना, थूकना, छींकना और खाँसना: ये अकर्मण क्रियाओं के अलावा अन्य अकर्मक क्रिया के रहने पर कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न कभी नहीं आता।

जैसे-

वह अभी-अभी आया है।
मैं वहाँ कई बार गया हूँ।
बच्चा अभी तो सोया था।

संयुक्त क्रिया के सभी खंड सकर्मक रहने की स्थिति में भूतकाल के उक्त भेदों में कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न का प्रयोग होता है।

जैसे-
सालिम अली ने पक्षियों को देख लिया था।
मैंने इस प्रश्न का उत्तर दे दिया है।

परन्तु नित्यताबोधक सकर्मक संयुक्त क्रिया का कर्ता ‘ने’ चिन्ह कभी नहीं लाता है।

जैसे-

वे बार-बार गिना किये, हाथ कुछ न लगा। (भारतेन्दु)
वह चित्र-सी चुपचाप खड़ी सुना की। (पं0 अ0 व्यास)
इस दृश्य को पाण्डव सामने बैठे देखा किए। (बाल भारत)
हजरत भी कल कहेंगे कि हम क्या किए। (पं0 केशवराम भट्ट)

यदि संयुक्त अकर्मक क्रिया का अंतिम खण्ड ‘डालना’ हो तो उक्त भूतकालों में कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न अवश्य आता है, किन्तु यदि अंतिम खंड ‘देना’ हो तो ‘ने’ चिह्न विकल्प से आता है।

जैसे-

उसने रातभर जाग डाला। (पं0 अ0 दन्त व्यास)
जब मानसिंह चढ़ आए तब पठानों की सेना चल दी। (पं0 केशवराम भट्ट)
श्रीकृष्ण मथुरा चल दिए। (प्रेम सागर)
मैं अपना-सा मुँह लेकर चल दिया। (विद्यार्थी)

मुस्करा देना, हँस देना, रो देना: इन क्रियाओं के कर्ता ‘ने’ चिन्ह निश्चित रूप से लाते हैं।

जैसे-

मोहन ने नारद को देखकर मुस्कुरा दिया।
आकर के मेरी कब्र पर तुमने जो मुस्कुरा दिया।
बिजली छिटक के गिर पड़ी और सारा कफन जला दिया। (हबीब पेंटर)
मुकद्दर ने रो दिया हाथ मलकर। (पं0 केशवराव भट्ट)

संकेत में संयुक्त क्रिया के अन्त में ‘होना’ का हेतुहेतुमद्भूत रूप ‘ने’ चिह्न के साथ भी प्रयुक्त होता है।

जैसे-

यदि संजीव ने पढ़ा होता तो अवश्य सफल होता।
यदि भाई जी आए थे तो आपने रोक लिया होता।

प्रेरणार्थक रूप बन जाने पर सभी क्रियाएँ सकर्मक हो जाती हैं और सभी प्रेरणार्थक क्रियाओं के रहने पर सामान्य, आसन्न, पूर्ण, संदिग्ध आदि भूतकालों में कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न आता है।

जैसे-

राजू श्रीवास्तव ने सबों को हँसाया। माँ ने पत्र भिजवाया है।
पुत्र ने प्रणाम कहलवाया है। अच्छे अंकों ने राहुल को सम्मान दिलाया।
कठिन मेहनत ने हर्ष को डॉक्टर बनाया था।

वर्तमान एवं भविष्यत् कालों में कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न कभी नहीं आता।

जैसे-

वह तरुमित्रा का प्रतिनिधित्व कर रहा था।
जब मि0 ग्लाड चलते थे, तब पेड़े-पौधे तक सहम जाते थे।
पूरी लंका जल रही थी और विभीषण भजन कर रहे थे।
पूरी लंका जल रही थी और विभीषण भजन कर रहे थे।

‘चुकना’ क्रिया रहने पर भूतकाल में भी कर्ता के साथ ‘ने’ चिह्न का प्रयोग नहीं होता है।

जैसे-

मैं भात खा चुका/हूँ/था/ होता। वह देख चुका था।
सलोनी यह संग्रह पढ़ चुकी होगी

क्रिया पर कर्ता के चिह्नों का प्रभाव:

1. चिह्न-रहित ;‘ने’ चिन्ह-रहित) कर्ता की क्रिया का रूप के लिंग-वचन के अनुसार होता है।

जैसे-

उड़ान भरता एक वायुयान नीचे गिर गया था।
आज भी सुपुत्र माता-पिता की सेवा को अपना कर्तव्य मानते हैं।
वह अपने करियर के प्रति बेहद चिंतित है।

उक्त उदाहरणों में हम देख रहे हैं कि कर्ता का शून्य चिह्न है यानी उसके साथ ‘ने’ नहीं है और कर्म के रहने पर भी क्रिया कर्तानुसार ही हुई है।

2. यदि वाक्य में एक ही लिंग-वचन के कई चिह्न-वचन के चिह्न-रहित कर्ता ‘और’, ‘तथा’, एवं, ‘व’ आदि से जुड़े हों तो क्रिया उसी लिंग में बहुवचन हो जाती है। यानी
कई कर्ता (‘ने’ रहित एक ही लिंग) + (सम्मान लिंग)

जैसे-

आरती, शालू और मेघा अष्टम वर्ग में पढ़ती हैं।
शरद्, अंकेश और अभिनव नवम वर्ग में पढ़ते हैं।

3. यदि वाक्य में दोनों लिंगों और वचनों के अनेक चिन्ह-रहित कर्ता हों तो क्रिया बहुवचन के सिवा लिंग में अंतिम कर्ता के अनुसार होगी।

जैसे-

एक घोड़ा, दो गदहे और बहुत-सी बकरियाँ मैदान में चर रही हैं।
एक बकरी, दो गदहे और चार घोड़े मैदान में चरेत हैं।

4. यदि अंतिम कर्ता एकवचन हो तो क्रिया एकवचन और बहुवचन दोनों होती है।

जैसे-

तुम्हारी बकरियाँ, उसकी घोड़ी और मेरा बैल उस खेत में चरता है/चरते हैं। (पं0 अंबिकादत व्यास)

5. यदि चिह्न रहित अनेक कर्ता परस्पर किसी विभाजक (या, अथवा, वा आदि) से जुड़े हों तो क्रिया अंतिम कर्ता के लिंग-वचन के अनुसार होती है।

जैसे-

मेरी बेटी या उसका बेटा पर्यावरण को महत्व नहीं देता।
स्थिति ऐसी है कि मोनू की गाय या मेरा बैल बिकेगा।

6. यदि चिह्न-रहित अनेक कर्ताओं और क्रियाओं के बीच में कोई समुदायवाचक शब्द आए तो क्रिया, लिंग और वचन में समुदायवाचक शब्द के अनुसार होगी।

जैसे-

अमरीका-तालिबान की लड़ाई में बच्चे, बूढे, जबान, औरतें सबके सब प्रभावित हुए।

7. आदर के लिए एकवचन कर्ता के साथ बहुवचन क्रिया का प्रयोग होता है, यदि कर्ता चिन्ह-रहित हो तो

जैसे-

पिताजी आने वाले हैं।
दादाजी चश्मा पहनकर बहुत सुन्दर लगती हैं।

8. यदि चिह्न-रहित अनेक कर्ताओं से बहुवचन का अर्थ निकले तो क्रिया बहुवचन और यदि एकवचन का अर्थ निकले तो क्रिया एकवचन होती है; चाहे कर्ताओं के आगे समूहवाचक शब्द हों अथवा नहीं हों।

जैसे-

2007 की बाढ़ के कारण खेती-बाड़ी घर-द्वार, धन-दौलत मेरा सब चला गया।
शिक्षक की प्रेरक बातें सुन मेरा उत्सा, धैर्य और आनंद बढ़ता चला गया।

9. जब कोई स्त्री या पुरुष अपने परिवार की ओर से या किसी समुदाय की ओर से जिसमें स्त्री-पुरुष दोनों हों, कुछ कहता है तब वह स्त्री हो या पुरुष (कहनेवाला) अपने लिए पुँ0 बहुवचन क्रिया का प्रयोग करता है।

10. चिह्न-रहित मुख्य कर्ता के अनुसार क्रिया होती है, विधेय के अनुसार नहीं।

जैसे-

लड़की बीमारी के कारण सूखकर काठ हो गई।
वह लड़का आजकल लड़की बना हुआ है।
यह भाग्य का ही फेरा है कि अर्जुन विराट नगर में बृहन्नला बन गया।
औरतें भी आदमी कहलाती हैं, जनबा !

11. यदि कर्ता चिह्न-युक्त हो (‘ने’ से जुड़ा) और वाक्य कर्म-रहित तो क्रिया पँु0 एकवचन होती है।

जैसे-

मेरी माँ ने कहा था। पिताजी ने देखा था।
शिक्षकों ने पढ़ाया होगा। कवि ने कहा है।
किसी विद्वान ने सच ही कहा है कि …..।

निम्नलिखित वाक्यों के खाली स्थानों में व्यक्तिवाचक या अन्य संज्ञाओं का प्रयोग करते हुए वाक्य पूरे करें:

1. …….. ने ……. को पहले ही समझाया था; लेकिन …… ने मेरी बात मानी ही नहीं।
2. ये सब बातें ……… ने ही बतायी थीं।
3. …….. ने ……… से क्या कहा था?
4. वे लोग शिकायत कर रहे थे …….. ने जरूर गाली दी होगी।
5. …… ने जो भी कहा है पुत्र के भले के लिए ही कहा।
6. …….. ने स्पष्ट कह दिया था कि अब मरीज को यहाँ आने की आवश्यकता नहीं है।
7. …….. ने तय कर लिया था कि उसे मुकदमा चलना ही चाहिए।
8. ……… ने चोर को मकान में घुसते देखा और सीटी बजाने लगा।
9. …… ने जिस काम के लिए आरुणि से कहा था उसने वह काम कर दिखाया।
10. …… ने अपना अज्ञातवास भी बसूबी पूरा किया।
11. ……. ने गीता में सच ही कहा है कि हमें निरंतर अपना काम करते रहना चाहिए।
12. …… ने ऐसी सजा सुनाई कि सभी ताली बजाने लगे।
13. क्या …… ने तेरे साथ ऐसे दुर्व्यवहार किया है ? उसपर केस कर बता देना चाहिए कि दहेज लेना और देना दोनों गैरकानूनी हैं।
14. इसका अर्थ यह हुआ कि …… ने अपनी पत्नी पर चरित्रहीनता का झूठा आरोप लगाया है।
15. ……. ने कहा, ‘‘बेटा ! कोई ऐसा काम मत कर कि दुनिया तुम पर थू-थू करे।’’
16. एक….. ने ही मित्र को धोखा दिया है।
17. ……. ने इस बारे में क्या बताया था? और तुने परीक्षा में क्या कर दिखाया। छिः ! लानत है तुमको।
18. …… ने प्रश्न किया कि पेड़-पौधे के बारे में तुम्हारा क्या विचार है ?
19. …….. ने कई फतिंगे एक साथ पकड़े।
20. ने ठीक ही कहा था कि जो डर गया वह मर गया।

कर्म कारक ‘‘जिस पर क्रिया ;कामद्ध का फल पड़े, ‘कर्म कारक’ कहलाता है।’’

जैसे-

तालिबानियों ने पाकिस्तान को रौंद डाला।
सुन्दरलाल बहुगुणा ने ‘चिपको आन्दोलन’ चलाया।

इन दोनों वाक्यों में ‘पाकिस्तान’ और ‘चिपको आन्दोलन’ कर्म हैं; क्योंकि ‘रौंद डालना’ और ‘चलाना’ क्रिया से प्रभावित हैं। कर्म कारक का चिह्न ‘को’ है; परन्तु जहाँ ‘को’ चिह्न नहीं रहता है, वहाँ कर्म का शून्य चिह्न माना जाता है।

जैसे-

वह रोटी खाता है। भालू नाच दिखाता है।
इन वाक्यों में ‘रोटी’ और ‘नाच’ दोनों के चिन्ह-रहित कर्म हैं।

कभी-कभी वाक्यों में दो-दो कर्मों का प्रयोग भी देखा जाता है, जिनमें एक मुख्य कर्म और दूसरा गौण कर्म होता है। प्रायः वस्तुबोधक को मुख्य कर्म और प्राणिबोधक को गौण कर्म माना जाता है।

जैसे-

माॅ ने बच्चे को दूध पिलाया।
गौण कर्म मुख्य कर्म

क्रिया पर कर्म का प्रभाव:

1. यदि वाक्य में कर्म चिन्ह-रहित (शून्य) रहे और कर्ता में ‘ने’ लगा हो तो क्रिया कर्म के लिंग-वचन के अनुसार होती है।

जैसे-

कवि ने कविता सुनाई। माँ ने रोटी खिलाई।
मैंने एक सपना देखा। तिलक ने महान भारत का सपना देखा था।
गुलाम अली ने एक अच्छी गजल सुनाई थी। बन्दर ने कई केले खाए हैं।
बच्चों ने चार खिलौने खरीदे होंगे।

2. यदि वाक्य में कर्ता और कर्म दोनों चिह्न-युक्त हों तो क्रिया सदैव पुॅ0 एकवचन होती हैं।

जैसे-

स्त्रियों ने पुरुषों को देखा था। चरवाहों ने गायों को चराया होगा।
शिक्षक ने छात्राओं को पढ़ाया है। गाँधीजी ने सत्य और अहिंसा को महत्व दिया है।

3. क्रिया की अनिवार्यता प्रकट करने के लिए कर्ता में ‘ने’ की जगह ‘को’ लगाया जाता है और क्रिया कर्म के लिंग-वचन के अनुसार होती है।

जैसे-

उस मां को बच्चा ही होगा। अंशु को एम. ए. करना ही होगा।
नूतन को पुस्तकें खरीदनी होंगी।

4. अशक्ति प्रकट करने के लिए कर्ता में ‘से’ चिन्ह लगाया जाता है और कर्म को चिह्न-सहित। ऐसी स्थिति में क्रिया कर्म के लिंग-वचन के अनुसार ही होती है।

जैसे-

रामानुज से पुस्तक पढ़ी नहीं जाती। उससे रोटी खायी नहीं जाती है।
शीला से भात खाया नहीं जाता था।

5. यदि कर्ता चिह्न-युक्त हो, पहला कर्म भी चिह्न-युक्त हो और दूसरा कर्म चिन्ह-रहित रहे तो क्रिया दूसरे कर्म (मुख्य कर्म) के अनुसार होती है।

जैसे-

माता ने पुत्री को विदाई के समय बहुत धन दिया।
पिता ने पुत्री को/पुत्र को बधाई दी।

निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध करें:

1. माँ ने बच्चे को जगाई और कही कि नहा-धोकर स्कूल के लिए तैयार हो जाओ ताकि समय पर स्कूल पहुँच सको और अपने पढ़ाई में लग जाओ।
2. पिताजी ने मुस्कराते हुए कहे कि सपूत को ऐसा ही होना चाहिए, जो सदैव इस बात के लिए चिंतित रहे कि उसके द्वारा ऐसा कोई कार्य न होने पाए जिससे पिता को सिर नीचे करना पड़े।
3. कवयित्री ने कविता पाठ करते हुए कही-
‘‘हम ज्यों-ज्यों बढ़ते जाते हैं;
त्यों-त्यों ही घटते जाते हैं।’’
4. सोनपुर में पशु-मेला लगा था। एक किसान ने अपने छोटी बहन से कही कि मुझे दो बैल खरीदना है; तुम मेरे लिए रोटियाँ बना दो और पप्पू से कहो कि वह भी हमारे साथ चले।
5. सरकार ने घोषणा किया कि हम अगली पंचवर्षीय योजना में शिक्षा और कृषि को बहुत अधिक महत्व देंगे।
6. कौआ की आँख तेज होती है तभी तो वह पलक झपकते बच्चा के हाथ से रोटी का टुकड़ा ले भागता है।
7. प्रवर ने तो रोटियाँ खायी, तुमने क्या खायी है?
8. एक मित्र ने अपने अन्य मित्र को बधाई दिया और कहा कि आपका बेटा परीक्षा पास किया है; मिठाई खिलाइए।
9. जो लोग अंधा होता है, उसे भ्रष्टाचार नहीं दिखता।
10. गोरा चमड़ीवाले को काला पोशाक बहुत फबता है।

करण कारक ‘‘वाक्य में जिस साधन या माध्यम से क्रिया का सम्पादन होता है, उसे ही ‘करण-कारक’ कहते हैं।’’ अर्थात करण कारक साधन करता है। इसका चिन्ह ‘से’ है, कहीं-कहीं ‘द्वारा’ का प्रयोग भी किया जाता है।

जैसे-
चाहो, तो इस कलम से पूरी कहानी लिख लो।
पुलिस तमाशा देखती रही और अपहर्ता बलेरो से लड़की को ले भागा।
छात्रों को पत्र के द्वारा परीक्षा की सूचना मिली है।
उपर्युक्त उदाहरणों में कलम, बलेरो और पत्र करण कारक हैं।

कभी-कभी वाक्य में करण का चिह्न लुप्त भी रहता है, वहाॅ भ्रमित नहीं होना चाहिए, सीधे क्रिया के साधन खोजने चाहिए;

जैसे-

किससे या किसके द्वारा काम हुआ अथवा होता है?

उदाहरण-

मैं आपकों आंखों देखी खबर सुना रहा हूँ। किससे देखी ? आँखों से (करण)
आज भी संसार में करोड़ों लोग भूखों मर रहे हैं। (भूखों-करण कारक)
करीम मियां ने दो-दो जवान बेटों को अपने हाथों दफनाया। (हाथों-करण कारक)

प्रेरक कर्ता कारक में भी करण का ‘से’ चिह्न देखा जाता है।

जैसे-

यदि शत्रुओं से तेरा नाम न जपवाऊॅ तो मैं विष्णुगुप्त चाणक्य नहीं।
अहमाबाद जाते हो तो मेरा प्रस्ताव लोगों से मनवा के छोड़ना।

क्रिया की रीति या प्रकार बताने के लिए भी ‘से’ चिह्न का प्रयोग किया जाता है।

जैसे-

धीरे से बोलो, दीवार के भी कान होते हैं।
जहाँ भी रहो, खुशी से रहो, यही मेरा आशीर्वाद है।

सम्प्रदान कारक ‘‘कर्ता कारक जिसके लिए या जिस उद्देश्य के लिए क्रिया का संपादन करता है वह सम्प्रदान कारक होता है।’’

जैसे-

मुख्य मंत्री नीतिश कुमार ने बाढ़-पीड़ितों के लिए अनाज और कपड़े बैंटवाए।
इस वाक्य में ‘बाढ़-पीड़ित’ सम्प्रदान कारक है; लेकिन यह कर्म के ‘को’ की तरह नहीं के लिए’ ‘के बोध कराता है।

जैसे-

गृहिणी ने गरीबों को पकड़े दिए। माँ ने बच्चे को मिठाइयाँ दीं।

उपर्युक्त उदाहरणों में गरीबों को …… गरीबों के लिए और बच्चे को ……. बच्चे के लिए की ओर संकेत है। प्रथम उदाहरण में एक और बात है …….. जब कोई वस्तु किसी को हमेशा-हमेशा के लिए (दान आदि अर्थ में) दी जाती है तब वहाँ ‘को’ का प्रयोग होता है जो ‘के लिए’ का बोध कराता है। प्रथम उदाहरण में गरीबों को कपड़े दान में दिए गए हैं। इसलिए ‘गरीब’ सम्प्रदान कारक का उदाहरण हुआ।
यदि ‘गरीबों’ की जगह ‘धोबी’ का प्रयोग किया जाए तो वहाॅ ‘को’, ‘के लिए’ का बोधक नहीं होगा।

नमस्कार आदि के लिए भी सम्प्रदान कारक का चिह्न ही लगाया जाता है।

जैसे-

पिताजी को प्रणाम। (पिताजी के लिए प्रणाम)
दादाजी को नमस्कार ! (दादाजी के लिए नमस्कार)

‘को’ और ‘के लिए’ के अतिरिक्त ‘के वास्ते’ और ‘के निमित’ का भी प्रयोग होता है।

जैसे-

रावण के वास्ते ही रामावतार हुआ था। यह चावल पूजा के निमित्त है।

‘को’ का विभिन्न रूपों में प्रयोग और भ्रम:

नीचे लिखे वाक्यों पर गौर करें-

यह कविता कई भावों को प्रकट करती है।
फल को खूब पका हुआ होना चाहिए।
वे कवियों पर लगे हुए कलंक को धो डालें।
लोग नहीं चाहते थे कि वे यातनाओं को झेलें।

अब इन वाक्यों को देखें-

यह कविता कई भाव प्रकट करती है।
फल खूब पका हुआ होना चाहिए।

इसी तरह उपर्युक्त वाक्यों से ‘को’ हटाकर उन्हें पढ़ें और दोनों में तुलना करें। आप पायँगे कि ‘को’ रहित वाक्य ज्यादा सुंदर हैं; क्योंकि इन वाक्यों में ‘को’ का अनावश्यक प्रयोग हुआ है। कुछ वाक्यों में ‘को’ के प्रयोग से या तो अर्थ ही बदल जाता है या फिर वह बहुत ही भ्रामक हो जाता है।

नीचे लिखे वाक्यों को देखें-

प्रकृति ने रात्रि को विश्राम के लिए बनाया है।

भ्रामक भाव- (प्रकृति ने रात्रि इसलिए बनाई है कि वह विश्राम करे)
प्रकृति ने रात्रि विश्राम के लिए बनाई है।

सामान्य भाव- (प्रकृति ने रात्रि जीव-जन्तुओं के विश्राम के लिए बनाई है)
कुछ लोग ‘पर’, ‘से’, ‘के लिए’ और ‘के साथ’ के स्थान पर भी ‘को’ का प्रयोग कर बैठते है।

नीचे लिखे वाक्यों में ‘को’ की जगह उपर्युक्त चिह्न लगाएँ-

1. वह इस व्याकरण की असलियत हिन्दी जगत को प्रकट कर दे।
2. वह प्रत्येक प्रश्न को वैज्ञानिक ढंग पर विश्लेषण करने का पक्षपाती था।
3. इनको इन्कार कर वह स्वराज्य क्या खाक लेगा।
4. उनको समझौते की इच्छा थी।
5. सरकारी एजेंटों को तुम अपना माल मत बेचो।
6. स्त्री को ‘स्त्री’ संज्ञा देकर पुरूष को छुटकारा नहीं।
7. मैं ऐसा व्यक्ति नहीं हूँ जो आपको अधिकारपूर्वक कह सकूँ।
8. मै अध्यक्ष को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने को निवेदन करता हूँ।
9. भारतीयों के आन्दोलन को जोरदार समर्थन प्राप्त था।
10. उन्होंने भवन की काईवाई को देखा था।
11. उस पुस्तक को तो मैंने यों ही रहने दी।
12. वे सन्तान को लेकर दुःखी थे।
13. वह खेल को लेकर व्यस्त था।
14. इस विषय को लेकर दोनों राष्ट्रों में बहुत मतभेद है।

अब ‘को’ के प्रयोग संबंधी कुछ नियमों पर विचार करें:

1. जहाँ कर्म अनुक्त रहे वहाँ ‘को’ का प्रयोग करना चाहिए।

जैसे-

बन्दर आमों को बड़े चाव से खाता है।
खगोलशास्त्री तारों को देख रहे हैं।
कुछ राजनेताओं ने ब्राह्मणों को बहुत सतया है।

2. व्यक्तिवाचक, अधिकार वाचक और व्यापार कर्तृवाचक में ‘को’ का प्रयोग किया जाता है।

जैसे-

मेघा को पढ़ने दो।
फैक्ट्री के मालिक को समझाना चाहिए।
अपने सिपाही को बुलाओ।
वह अपने नौकर को कभी-कभी मारता भी है।

3. गौण कर्म या सम्प्रदान कारक में ‘को’ का प्रयोग होता है।

जैसे-

पूतना कृष्ण को दूध पिलाने लगी।
मैंने उसको पुस्तक खरीद दी। (उसके लिए)
उसने भूखों को अन्न नंगों को वस्त्र दिए।

4. आना, छजना, पचना, पड़ना, भाना, मिलना, रूचना, लगना, शोभना, सुहाना, सूझना, होना और चाहिए इत्यादि के योग में ‘को’ का प्रयोग होता है।

जैसे-

उन्हें याद आती है, आपकी प्रेरक बातें।
उसको भोजन नहीं पचता है।
दिल को कल क्या पड़ी, बात ही बिगड़ गई।
उसको क्या पड़ा है, बिगड़ता तो मेरा है न।
दशरथ को राम के विछोह में कुछ नहीं भाता था।
मजदूरों को उनका स्वत्व कब मिलेगा ?
बच्चों को मिठाई बहुत रूचती है।

5. निमित, आवश्यकता और अवस्था-द्योतन में ‘को’ का प्रयोग होता है।

जैसे-

राम शबरी से मिलने को आए था।
पिताजी स्नान को गए हैं।
अब मुझको पढ़ने जाना है।
उनको यहां फिर-फिर आना होगा।

6. योग्य, उपयुक्त, उचित, आवश्यक, नमस्कार, धिक्कार और धन्यवाद के योग्य में ‘को’ का प्रयोग होता है।

जैसे-

स्वच्छ वायु-सेवन आपको उपयोगी होगा।
विद्यार्थी को ब्रह्मचर्य रखना उचित है।
मुझको वहां जाना आवश्यक है।
श्री गणेश को नमस्कार।
आज भी पानी को धिक्कार है।
इस सहयोग के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।

7. समय, स्थान और विनिमय-द्योतक में ‘को’ का प्रयोग होता है।

जैसे-

पंजाब मेल भोर को आएगी।
वह घोड़ा कितने को दोगे?
कल रात को अच्छी वर्षा हुई थी।
नोटः ऐसी जगहों पर ‘में’ और ‘पर’ का भी प्रयोग होता है।

8. समाना, चढ़नाद्व खुलना, लगाना, होना, डरना, कहना और पूछना क्रियाओं के योग में भी ‘को’ का प्रयोग किया होता है।

जैसे-

आपको भूत समाया है जो ऐसी-वैसी हरकतें कर रहे हैं।
उस विद्याथर््ी को पढ़ाई का भूत चढ़ा है।
वह किसी काम का नहीं, उसको आग लगाओ।
तुमको एक बात कहता हूँ, किसी से मत कहना।

नोट: ‘होना’ क्रिया के साथ अस्तित्व अर्थ में ‘को’ के बदले ‘के’ भी लाया जाता है।
जैसे- सुधीर जी के पुत्र हुआ है।
उसके दाढ़ी नहीं है।
चली थी बर्छी किसी पर, किसी के आन लगी।

9. निम्नलिखित अवस्थाओं में ‘को’ प्रायः रहता है; परन्तु विशेष अर्थ में स्वराघात के बदले कहीं-कहीं भी है, छोटे-छोटे जीवों एवं अप्राणिवाचक संज्ञाओं के साथ।

जैसे-

उसने बिल्ली मारी है।
किधर तुम छोड़कर मुझको सिधारे, हे राम!
…. मगर एक जुगनू चमकते जो देखा मैंने ……
वह सुबह आया है।

अपादान कारक ‘‘वाक्य में जिस स्थान या वस्तु से किसी व्यक्ति या वस्तु की पृथकता अथवा तुलना का बोध होता है, वहां अपादान कारक होता है।’’ यानी अपादान कारक से जुदाई या विलगाव का बोध होता है। प्रेम, घृणा, लज्जा, ईर्ष्या, भय और सीखने आदि भावों की अभिव्यथ्क्त के लिए अपादान कारक का ही प्रयोग किया जाता है; क्योंकि उक्त कारणों से अलग होने की क्रिया किसी-न-किसी रूप में जरूर होती है।

जैसे-

पतझड़ में पीपल और ढाक के पेड़ों से पत्ते झड़ने लगते हैं।
वह अभी तक हैदराबाद से नहीं लौटा हैं।
मेरा घर शहर से दूर है।
उसकी बहन मुझसे लजाती है।
खरगोश बाघ से बहुत डरता है।
नूतन को गंदगी से बहुत घृणा है।
हमें अपने पड़ोसी से ईष्र्या नहीं करनी चाहिए।
मैं आज से पढ़ने जाऊंगा।

‘से’ का प्रयोग

‘से’ चिह्न ‘करण’ एवं ‘अपादान’ दोनों कारकों का है; किन्तु में काफी अंतर है। करण कारक का ‘से’ माध्यम या साधन के लिए प्रयुक्त होता है, जबकि अपादान का ‘से’ जुदाई या अलग होने या करने का बोध कराता है। करण का ‘से’ साधन से जुड़ा रहता है।

जैसे-

वह कलम से लिखता है। (साधन)
उसके हाथ से कलम गिर गई। (हाथ से अलग होना)

1. अनुक्त और प्रेरक कर्ता कारक में ‘से’ का प्रयोग होता है।

जैसे-

मुझसे रोटी खायी जाती है। (मेरे द्वारा)
आपसे ग्रथ पढ़ा गया था। (आपके द्वारा)
मुझसे सोया नहीं जाता।
वह मुझसे पत्र लिखवाती है।

2. क्रिया करने की रीति या प्रकार बताने मे भी ‘से’ का प्रयोग होता है।

जैसे-

धीरे (से) बोलो, कोई सुन लेगा।
जहां भी रहो, खुशी से रहो।

3. मूल्यवाचक संज्ञा और प्रकृति बोध में ‘से’ का प्रयोग देखा जाता है।

जैसे-

कल्याण कंचन से मोल नहीं ले सकते हो।
छूने से गर्मी मालूम होती हो।
वह देखने से सत जान पड़ता है।

4. कारण, साथ, द्वारा, चिह्न, विकार, उत्पत्ति और निषेध में भी ‘से’ का प्रयोग होता है।

जैसे-

आलस्य से वह समय पर न आ सका।
दया से उसका हृदय मोम हो गया।
गर्मी से उसका चेहरा जमतमाया हुआ था।
जल में रहकर मगर से बैर रखना अच्छी बात नहीं।
वह एक आॅख से काना और एक पाॅव से लॅगड़ा जो ठहरा।
आप-से-आप कुछ भी नहीं होता, मेहनत करो, मेहनत।
दौड़-धूप से नौकरी नहीं मिलती, रिश्वत के लिए भी तैयार रहो।

5. अपवाद (विभाग) में ‘से’ का प्रयोग अपादान के लिए होता है।

जैसे-

वह ऐसे गिरा मानो आकाश से तारे।
वह नजरों से ऐसे गिरा, जैसे पेड़ से पत्ते।

6. पूछना, दुहना, जांचना, कहना, पकाना आदि क्रियाओं के गौंण कर्म में ‘से’ का प्रयोग होता है।

जैसे-

मैं आपसे पूछता हूं वहां क्या-क्या सुना है?
भिखारी धनी से कहीं जांच तो नहीं है?
मैं आपसे कई बार कह चुकी हैं?
बाबर्ची चावल से भात पकाता है।

7. मित्रता, परिचय अपेक्षा, आरंभ, परे, बाहर, रहित, हीन, दूर, आगे, पीछे, ऊपर, नीचे, अतिरिक्त, लज्जा, बचाव, डर, निकालना इत्यादि शब्दों के योग में ‘से’ का प्रयोग देखा जाता है।

जैसे-

संजय भांद्रा अपने सभी भाइयों से अलग है।
उनको इन सिद्धांतों से अच्छा परिचय है।
धन से कोई श्रेष्ठ नहीं होता, विद्या से होता है।
बुद्धिमान शत्रु बुद्धिहीन मित्रों से कहीं अच्छा होता है।
मानव से तो कुत्ता भला जो कम-से-कम गद्दारी तो नहीं करता।
घर से बाहर तक खोज डाला, कहीं नहीं मिला।
विद्या और बुद्धि से हीन मानव पशु से भी शर्माना पड़ेगा।
भला मैं तुमसे क्यों डरूं, तुम कोई बाघ हो जो खा जाओगे।
अन्य लोगों को मैदान से बाहर निकाल दीजिए तभी मैच देखने का आनंद मिलेगा।

8. स्थान और समय की दूरी बताने में भी ‘से’ का प्रयोग होता है।

जैसे-

अभी भी गरीबों से दिल्ली देर है।
आज से कितने दिन बाद आपका आगमन होगा?

9. क्रियाविशेषण के साथ भी ‘से’ का प्रयोग होता है।

जैसे-

आप कहाॅ से टपक पड़े भाई जान?
किधर से आगमन हो रहा है श्रीमान् का ?

10. पूर्वकालिक क्रिया के अर्थ में भी ‘से’ का प्रयोग होता है।

जैसे-

उसके पेड़ से बंदूक चलाई थी। (पेड़ पर चढ़कर)
कोठे से देखों तो सब दिख जाएगा। (कोठे पर चढ़कर)

कुछ स्थलों पर ‘लुप्त’ रहता है-

जैसे-

बच्चा घुटनों चलता है।
खिल गई मेरे दिल की कली आप-ही-आप।
आपके सहारे ही तो मेरे दिन कटते हैं।
सांप-जैसे प्राणी पेट के बल चलते हैं।
दूधो नहाओ, पूतो फलो।
किसके मुँह खबर भेजी आपने ?
इस बात पर मैं तुम्हें जूते मारता।
आप हमेशा इस तरह क्यों बोलते हैं?

संबंध कारक ‘‘वाक्य में जिस पद से किसी वस्तु, व्यक्ति या पदार्थ का दूसरे व्यक्ति, वस्तु या पदार्थ से संबंध प्रकट हो, ‘संबंध कारक’ कहलाता है।’’

जैसे-

अंशु की बहन आशु है। यहां ‘अंशु’ संबंध कारक है।

यों तो संबंध और संबोधन को कारक माना ही नहीं जाना चाहिए; क्योंकि इसका संबंध क्रिया से किसी रूप में नहीं होता। हाॅ, कर्ता से अवश्य रहता है।

जैसे-

भीम के पुत्र घटोत्कच ने कौरवों के दाँत खट्टे कर दिए।

उक्त उदाहरण में हम देखते हैं कि क्रिया की उत्पत्ति में अन्य कारकों की तरह संबंध सक्रिय नहीं है। फिर भी, परंपरागत रूप से संबंध को कारक के भेदों में गिना जाता रहा है। इसका एकमात्र चिह्न ‘का’ है, जो लिंग और वचन से प्रभावित होकर ‘की’ और ‘के’ बन जाता है।

इन उदाहरणों को देखें-

गंगा का पुत्र भीष्म बाण चलाने में बड़े-बड़ों के कान काटते थे।
नदी के किनारे-किनारे वन-विभाग ने पेड़ लगवाए।
मेनका की पुत्री शकुंतला भरत की माँ बनी।

जब सर्वनाम पर संबंध कारक का प्रभाव पड़ता है, तब ना-ने-नी’ और ‘रा-रे-री’ हो जाता है।

जैसे-

अपने दही को कौन खट्टा कहता है?
मेरे पुत्र और तेरी पुत्री का जीवन सुखमय हो सकता है।

संबंध कारक के चिह्नों के प्रयोग से कई स्थलों पर अर्थभेद भी हो जाया करता है।

निम्नलिखित उदाहरण देखें-

उसके बहन नहीं है। (उसको बहन नहीं है)
उसकी बहन नहीं है। (यानी दूसरे की बहन है, उसकी नहीं)

‘का-के-की’ का प्रयोग

सम्पूर्णता, मूल्य, समय, परिमाण, व्यक्ति, अवस्था, दर, बदला, केवल, स्थान, प्रकार, योग्यता शक्ति, साथ, भविष्य, कारण, आधार, निश्चय, भाव, लक्षण, शीघ्रता आदि के लिए संबंध कारक के चिह्नों का प्रयोग होता है।

जैसे-

सात रुपये की थाली, नाचे घरवाली। (लोकोक्ति)
एक हाथ का साँप, फिर भी बाप-रे-बाप !
चार दिनों की चांदनी फिर अंधेरी रात।
राजा का रंक राई का पर्वत।
सबके-सब चले गए रह गए केवल तुम। (शिवमंगल सिंह सुमन)
अचंभे की बात सुनने योग्य ही होती है।
अब यह विपत्ति की घड़ी टलनेवाली ही है।
राह का थका बटोही गहरी नींद सोता है।
आज भी दूध-का-दूध और पानी-का-पानी होता है।
दिन का सोना और रात का करवटें बदलना कभी अच्छा नहीं होता।
बात की बात में बात निकल आती है।

तुल्य, अधीन, समीप और आगेे, पीछे, ऊपर, नीचे, बाहर, बायाँ, दायाँ, योग्य अनुसार, प्रति, साथ आदि शब्दों के योग में भी संबंध के चिन्ह आते हैं।

जैसे-

मेरे पीछे मेरा पूरा कुनबा है।
फल सर्वदा कर्म के अधीन रहा है।
नदी की ओर बढ़ो, वह तुम्हें मिल जाएगा।
सेनिया कांग्रेस का दायां हाथ है।
पति के साथ क्या तुम खुश हो ?
तुम्हें माता कब की पुकार रही है। (तुम्हें माता कब से पुकार रही है।)

यदि विशेष्य उपमान हो तो उपमेय में संबंध का चिह्न प्रयुक्त होगा।

जैसे-

वह दया का सागर है।
प्रेम का बंधन बड़ा मजबूत होता है।
कर्म की फाँस कभी गलफांस नहीं होती, जनाब !
कभी-कभी गौण कर्म में भी संबंध का चिह्न आता है। जैसे-
कोई गधा तुम्हारे लात मारे।

उन शब्दों के योग में भी संबंध-चिह्न आता है जो कृदंतीय शब्दों के कर्ता या कर्म के अर्थों में आ सके।

जैसे-

मुझे तो लगता है कि तुम उसी के आने से भागे जाते हो।
क्या हुआ जग के रूठे से ?
खिचड़ी के खाते ही लगा जी मिचलाने।

नोट: कहीं-कीं संबंधी लुप्त रहता है।

जैसे-

तुम सबकी सुन लेते हो अपनी कहाँ कहते हो।
मन की मन ही मांझा रही। (सूरदास)
यह कभी नहीं होने का है।
मै तेरी नहीं सुनूंगा।

अधिकरण कारक ‘‘वाक्य में क्रिया का आधार, आश्रय, समय या शर्त ‘अधिकरण ‘कहलाता है।’’ आधार को ही अधिकरण माना गया है। यह आधार तीन तरह का होता है-स्थानाधार, समयाधार और भावाधार। जब कोई स्थानवाची शब्द क्रिया का आधार बने तब वहाँ समानाधिकरण होता है।

जैसे-

बन्दर पेड़ पर रहता हैै।
चिड़ियाँ पेड़ों पर अपने घोंसले बनाती हैं।
मछलियां जल में रहती हैं।
मनुष्य अपने घर में भी सुरक्षित कहाँ रहता है।

जब कोई कालवाची शब्द क्रिया का आधार हो तब वहाँ कालाधिकरण होता है। जैसे- मैं अभी दो मिनटों में आता हूँ। जब कोई क्रिया ही क्रिया के आधार का काम करे, तब वहाँ भावाधिकरण होता है

जैसे-

शरद पढ़ने में तेज है। रामलक्ष्मी दौड़ने में तेज है।

कहीं-कहीं अधिकरण कारक के चिह्न (में, पर) लुप्त भी रहते हैं।

जैसे-

आजकल वह रांची रहता है।
मैं जल्द ही आपके दफ्तर पहुंच रहा हूँ।
ईश्वर करे, आपके घर मोती बरसे।

कहीं-कहीं अधिकरण का चिन्ह रहने पर भी वहाँ अन्य कारक होते हैं।

जैसे-

आजकल के नेता लोग रूपयों पर बिकते हैं। (‘रुपयों के लिए’ भाव है)

‘मै’ ओर ‘पर’ का प्रयोग

1. निर्धारण, कारक, भीतर, भेद, मूल्य, विरोध, अवस्था और द्वारा अर्थ में अधिकरण का चिह्न जाता है।

जैसे-

स्थलीय जीवों में हाथी सबसे बड़ा पशु है।
पहाड़ों में हिमाचल सबसे बड़ा और ऊॅचा है।
पाकिस्तान और तालिबान में कोई फर्क नहीं है।

2. अनुसार, सातत्य, दूरी, ऊपर, संलग्न और अंतर के अर्थों में और वार्तालाप के प्रसंग में ‘पर’ चिह्न का प्रयोग होता है।

जैसे-

नियत समय पर काम करो और उसका मीठा फल खाओ।
घोड़े पर चढ़नेवाला हर कोई घुड़सवार नहीं हो जाता।
यहां से पांच किलोमीटर पर गंगा बहती है।
इस पर वह क्रोध से बोला और चलते बना
मैं पत्र-पर-पत्र भेजता रहा और तुम चुपचाप बैठे रहे।

3. गत्यर्थक धातुओं के साथ ‘में’ और ‘पर’ दोनों आते हैं।

जैसे-

वह डेरे पर गया होगा।
मैं आपकी शरण में आया हूँ।
उक्त वाक्यों का वैकल्पिक रूप है।
वह डेरे को गया होगा।
मैं आपकी शरण को आया हूँ।

निम्नलिखित वाक्यों में ‘में’ की जगह ‘पर’ लिखे; क्योंकि इनमें ‘में’ भद्दा लग रहा है-

1. उसकी दृष्टि चित्र में गड़ी है।
2. वह पुस्तक में आँखे गाड़े है।
3. कन्या की हत्या में उन्हें आजीवन जेल हुई।
4. नाजायज शराब में मुरारि की गिरफ्तारी हुई।
5. हमारी भाषा में अंग्रेजी का बड़ा प्रभाव है।
6. उनकी माँग में सभी लोगों की सहानुभूति है।
7. भ्वाइस ऑफ अमेरिका में यह समाचार बताया गया है।
8. सड़क में भारी भीड़ थी।
9. उस स्थान में पहले से कई व्यक्ति मौजूद थे।
10. उन्होंने सेठ के चरणों में पगड़ी रख दी।

संबोधन कारक ‘‘जिस संज्ञापद से किसी को पुकारने, सावधान करने अथवा संबोधित करने का बोध हो, ‘संबोधन’ कारक कहते हैं।’’ संबोधन प्रायः कर्ता का ही होता है, इसीलिए संस्कृत में स्वतंत्र कारक नहीं माना गया है। संबोधित संज्ञाओं में बहुवचन का नियम लागू नहीं होता और सर्वनामों का कोई संबोंधन नहीं होता, सिर्फ संज्ञा पदों का ही होता है।

नीचे लिखे वाक्यों को देखें-

भाइयों एवं बहनों ! इस सभा में पधारे मेरे सहयोगियों ! मेरा अभिवादन स्वीकार करें।
हे भगवान ! इस सड़ी गर्मी में भी लोग कैसे जी रहे हैं।
बच्चो ! बिजली के तार को मत छूना।
देवियों और सज्जनों ! इस गाँव में आपका स्वागत है।

नोट: सिर्फ संबोधन कारक का चिन्ह संबोधित संज्ञा के पहले आता है।

संज्ञा एवं सर्वनाम पदों की रूप रचना

उल्लेखनीय है कि संज्ञा और सर्वनाम विकारी होते हैं और इसके रूप लिंग-वचन तथा कारक के कारक परिवर्तित होते रहते हैं।

नीचे कुछ संज्ञाओं एवं सर्वनामों के रूप दिए जा रहे हैं-

1. अकारान्त पुल्लिंग संज्ञा: ‘फूल’

कारक (परसर्ग) एकवचन बहुवचन
(0/ने) कर्ता फूल/फूल ने फूल/फूलों ने
(0/को) कर्म फूल/फूल को फूलों को
(से/द्वारा) करण फूल/फूल से/के द्वारा फूलों से/के द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान फूल को/के लिए फूलों को/के लिए
(से) अपादान फूल से फूलों से
(का-के-की) संबंध फूल का/के/की फूलों का/के/की
(में/पर) अधिकरण फूल में/पर फूलों में/पर
(हे/हो/अरे) संबोधन हे फूल ! हे फूलो !

2. अकारान्त स्त्री0 संज्ञा: ‘बहन’

कारक (परसर्ग) एकवचन बहुवचन
(0/ने) कर्ता बहन/बहन ने बहनें/बहनों ने
(0/को) कर्म बहन/बहन को बहनों को
(से/द्वारा) करण बहन/बहन द्वारा बहनों से/के द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान बहन को/के लिए बहनों को/के लिए
(से) अपादान बहन से बहनों से
(का-के-की) संबंध फूल का/के/की बहनों का/के/की
(में/पर) अधिकरण बहन में/पर बहनों में/पर
(हे/हो/अरे) संबोधन हे बहन ! हे बहनों !

3. अकारान्त पुल्लिंग संज्ञा: ‘लड़का’

कारक (परसर्ग) एकवचन बहुवचन
(0/ने) कर्ता लड़का/लड़के ने लड़के/लड़कों
(0/को) कर्म लड़के को लड़कों को
(से/द्वारा) करण लड़के से/के द्वारा लड़कों से/के द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान लड़के से/के द्वारा लड़कों को/के लिए
(से) अपादान लड़के से लड़कों से
(का-के-की) संबंध लड़के का/के/की लड़कों का/के/की
(में/पर) अधिकरण लड़के में/पर लड़कों में/पर
(हे/हो/अरे) संबोधन हे लड़के ! हे लड़कों !

4. अकारान्त स्त्री0 संज्ञा: ‘माता’

कारक (परसर्ग) एकवचन बहुवचन
(0/ने) कर्ता माता/माता ने माताएं/माताओं ने
(0/को) कर्म माता को माताओं को
(से/द्वारा) करण माता से/के द्वारा माताओं से/के द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान माता से/के द्वारा माताओं को/के लिए
(से) अपादान माता से माताओं से
(का-के-की) संबंध माता का/के/की माताओं का/के/की
(में/पर) अधिकरण माता में/पर माताओं में/पर
(हे/हो/अरे) संबोधन हे माता ! हे माताओं !

5. इकारान्त पुल्लिंग संज्ञा: ‘कवि’

कारक (परसर्ग) एकवचन बहुवचन
(0/ने) कर्ता कवि/कवि ने कवि/कवियों ने
(0/को) कर्म कवि को कवियों को
(से/द्वारा) करण कवि से/के द्वारा कवियों से/के द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान कवि से/के द्वारा कवियों को/के लिए
(से) अपादान कवि से कवियों से
(का-के-की) संबंध कवि का/के/की कवियों का/के/की
(में/पर) अधिकरण कवि में/पर कवियों में/पर
(हे/हो/अरे) संबोधन हे कवि ! हे कवियों !

6. इकारान्त स्त्री संज्ञा: ‘शक्ति’

कारक (परसर्ग) एकवचन बहुवचन
(0/ने) कर्ता शक्ति/शक्ति ने शक्तियों ने/शक्तियों
(0/को) कर्म शक्ति/शक्ति को शक्तियों को
(से/द्वारा) करण शक्ति से/के द्वारा शक्तियों से/के द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान शक्ति से/के द्वारा शक्तियों को/के लिए
(से) अपादान कवि से शक्तियों से
(का-के-की) संबंध शक्ति का/के/की शक्तियों का/के/की
(में/पर) अधिकरण शक्ति में/पर शक्तियों में/पर
(हे/हो/अरे) संबोधन हे शक्ति ! हे शक्तियों !

7. ईकारान्त पुॅल्लिंग संज्ञा: ‘धोबी’
एकवचन में सभी रूप: धोबी ने / को / से / के द्वारा / को / के लिए / से / का / के / की / में / पर / हे धोबी !
बहुवचन में सभी रूप: धोबियों ने / को / से / के द्वारा / को / के लिए / से / का / के / की / में / पर / हे धोबियो !
8. ईकारान्त स्त्री संज्ञा: ‘बेटी’

कारक (परसर्ग) एकवचन बहुवचन
(0/ने) कर्ता बेटी ने/बेटी ने बेटियाँ ने/बेटियो
(0/को) कर्म बेटी/बेटी को बेटियाँ को
(से/द्वारा) करण बेटी से/के द्वारा बेटियाँ से/के द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान बेटी से/के द्वारा बेटियाँ को/के लिए
(से) अपादान बेटी से बेटियाँ से
(का-के-की) संबंध बेटी का/के/की बेटियाँ का/के/की
(में/पर) अधिकरण बेटी में/पर बेटियाँ में/पर
(हे/हो/अरे) संबोधन हे बेटी ! हे बेटियाँ !

9. उकारान्त पुल्लिंग संज्ञा: ‘साधु’
एकवचन में सभी रूप: साधु ने/को/से/के द्वारा/को/के लिए/से/का/के/की/में/पर/साधु !
बहुवचन में सभी रूप: साधुओं ने/को/से/के द्वारा/को/के लिए/से/का/के/की/में/पर/हे साधुओं !

10. उकारान्त स्त्री संज्ञा: ‘वस्तु’

कारक (परसर्ग) एकवचन बहुवचन
(0/ने) कर्ता वस्तु/वस्तु ने वस्तु / वस्तुओं
(0/को) कर्म वस्तु/वस्तु को वस्तुओं को
(से/द्वारा) करण वस्तु से/के द्वारा वस्तुओं से/के द्वारा
(को/के लिए) सम्प्रदान वस्तु से/के द्वारा वस्तुओं को/के लिए
(से) अपादान वस्तु से वस्तुओं से
(का-के-की) संबंध वस्तु का/के/की वस्तुओं का/के/की
(में/पर) अधिकरण वस्तु में/पर वस्तुओं में/पर
(हे/हो/अरे) संबोधन अरी वस्तु ! हे वस्तुओं !
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