April 19, 2024
alankar in hindi

अलंकार किसे कहते हैं? अलंकार की परिभाषा, भेद, उदाहरण

अलंकार किसे कहते हैं? अलंकार की परिभाषा, भेद, उदाहरण, हिंदी व्याकरण का बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है अलंकार जो की साहित्य खंड का हिस्सा है। अलंकार का वर्णन इस पृष्ठ में विस्तृत रूप में दिया गया है। यदि आप अलंकार, उसके भेद, प्रकार, परिभाषा अथवा उदाहरण जानना चाहते हैं तो यह लेख पूरा पढ़ें। और देखिये कितने प्रकार के अलंकार होते हैं।

संधि एवं संधि विच्छेद

अलंकार किसे कहते हैं? अलंकार की परिभाषा, भेद, उदाहरण

अलंकार शब्द ‘अलम्’ एवं ‘कार’ के योग से बना है, जिसका अर्थ है – आभूषण या विभूषित करने वाला

अलंकार किसे कहते हैं

जिन उपकरणों का शैलियों से काव्यों की सुन्दरता बढाई जाती है, उन्हे ही ‘अलंकार’ का जाता है।

अलंकार मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं-

  1. शब्दालंकार
  2. अर्थालंकार

शब्दालंकार : जहाँ शब्दें में अलंकार हो। अलंकार में शब्द विशेष को बदल दिया जाए तो अलंकार नहीं रह पाएगा।

शब्दालंकार के अंतर्गत आने वाले अलंकार –

  1. अनुप्रास
  2. यमक
  3. श्लेष
  4. पुनरुक्ति
  5. प्रश्न
  6. स्वरमैत्री, आदि

अर्थालंकार :  जहाँ अलंकार अर्थ पर आश्रित हो, वहां अर्थालंकार होता है। इस अलंकार में शब्दों के परिवर्तन कर देने पर भी अर्थ में बदलाव नहीं आता है।

अर्थालंकार के अंतर्गत आने वाले अलंकार –

  1. उपमा
  2. रूपक
  3. उत्प्रेक्षा
  4. अतिशयोक्ति
  5. अन्योक्ति
  6. अपह्नुति
  7. व्यतिरेक
  8. विरोधाभास, आदि

अनुप्रास अलंकार और उदाहरण

इस अलंकार में किसी व्यंजन वर्ण की आवृत्ति होती है। आवृत्ति का अर्थ है दोहराना। जैसे- ‘‘तरनि-तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये।’’ उपयुक्त उदाहरणों में ‘त’ वर्ण की लगातार आवृत्ति है, इस कारण से इसमें अनुप्रास अलंकार की छटा है।

अनुप्रास अलंकार के उदाहरण:

  • प्रसाद के काव्य कानन की काकली कहकहे लगाती नजर आती है।
  • चारु चंद्र की चंचल किरणें, खेल रहीं हैं जल थल में।
  • मुदित महीपति मंदिर आए। सेवक सचिव सुमंत बुलाए।
  • बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा ।

यमक अलंकार और उदाहरण

जिस काव्य में समान शब्द के अलग – अलग अर्थो में आवृत्ति हो, वहाँ यमक अलंकार होता है | यानी जहाँ एक ही शब्द जितनी बार आए उतने ही अलग – अलग अर्थ दे |

जैसे –  कनक कनक ते सौगुनी मादकता अधिकाय |
या खाये बौरात नर या पाए बौराय | |

इस पद्य में ‘कनक’ शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है | प्रथम कनक का अर्थ ‘सोना’ और दूसरा कनक का अर्थ – धतूरा है | अतः ‘कनक’ शब्द का दो बार प्रयोग और भिन्नार्थक के कारण उक्त पंक्तियों में यमक अलंकार की छटा दिखती है |

यमक अलंकार के उदाहरण : 

  • माला फेरत जुग गया, फिरा न मन का फेर |
    कर का मनका डारि दे, मन का मनका फेर ||
  • किसी सोच में हो विभोर सांसे कुछ ठंडी खींची |
    फिर झट गुलकर दिया दिया को दोनों आँखे मींची ||
  • केकी रव की नूपुर-ध्वनि सुन, जगती जगती की मूक प्यास |
  • बरजीते सर मैन के, ऐसे देखे मैं न |
    हरिनी के नैनान ते हरिनि के ये नैन |

श्लेष अलंकार और उदाहरण

श्लेष’ का अर्थ – चिपकना | जिस शब्द में एकाधिकार अर्थ हों, उसे  श्लिष्ट शब्द कहते हैं | श्लेष के दो भेद होते है – शब्द श्लेष और अर्थ श्लेष

1 – शब्द श्लेष : जहाँ एक शब्द अनेक अर्थो में प्रयुक्त होता है, वहाँ शब्द श्लेष होता है |

जैसे – रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून |
पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुस, चुन ||

यहाँ दूसरा पंक्ति में ‘पानी’ श्लिष्ट शब्द है, जो प्रसंग के अनुसार तीन अर्थ दे रहा है-

मोती के अर्थ में – चमक

मनुष्य  अर्थ में – प्रतिष्ठा और

चुने के अर्थ में – जल

इस एक शब्द  द्वारा अनेक अर्थो का बोध कराए जाने  यहाँ श्लेष अलंकार है |

2 – अर्थ श्लेष : जहाँ सामान्यतः एकार्थक शब्द के द्वारा एक से अधिक अर्थो का बोध हो, उसे अर्थ-श्लेष कहते हैं |

जैसे – नर की अरु नलनीर की गति एकै कर जोय |
जेतो निचो हवै चले, तेतो उँचो हो | |

उक्त उदाहरण की दूसरी पंक्ति ‘में निचो’ हवै चले’ और ‘ऊँचो होय’ शब्द सामान्यतः एक ही अर्थ का बोध कराते है, लेकिन ‘नर’ और ‘नलनीर’ के प्रसंग में दो भीनार्थो की प्रतीति  कराते है |

श्लेष अलंकार के उदाहरण :

  • पी तुम्हारी मुख बास तरंग
    आज बौरे भौरे सहकार |
    बोर – भौर  प्रसंग में-मस्त होना
    आम  प्रसंग में-मंजूरी निकलना
  • जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय |
    बारे उजियारे करै, बढ़े अँधेरो होय ||
    ‘बारे’ का अर्थ – जलना और बचपन
    ‘बढे’ का अर्थ – बुझने पर और बड़े  होने पर
  • जो घनीभूत पीड़ा थी मस्तक में स्मृति सी छाई |
    दुर्दिन में आँसू बनकर आज बरसने आई ||
    ‘घनीभूत’ के अर्थ – इकट्ठी और मेघ बनी हुई
    दुर्दिन के अर्थ – बुरे दिन और मेघाच्छन्न दिन |
  • रावन सिर सरोज बनचारी |
    चलि रघुवीर सिलीमुख धारी |

सिलीमुख’  के अर्थ – बाण, भ्र्मर

विप्सा अलंकार और उदाहरण 

आदर, घबराहट, आश्चर्य, घृणा, रोचकता आदि प्रदर्शित करने के लिए किसी शब्द को दुहराना ही वीप्सा अलंकार है |

जैसे –  मधुर – मधुर मेरे दीपक जल |

वीप्सा अलंकार को ही ‘पुनरुक्ति प्रकाश अलंका’ कहा जाता है |

वीप्सा अलंकार के उदाहरण:

  • विहग-विहग
    फिर चहर उठे ये पुंज – पुंज
    कल-कूजित कर उर  निकुंज
    चिर सुभग-सुभग

प्रश्न अलंकार और उदाहरण 

यदि पद में प्रश्न किया जाय तो उसमे प्रश्न अलंकार होता है |

जैसे –जीवन क्या है ? निर्झर है |
मस्ती ही इसका पानी है |

प्रश्न अलंकार के उदाहरण : 

  • उसके आशय की थाह मिलेगी किसको,
    जन कर जननी ही जान न पाई जिसको ?
  • कौन रोक सकता है उसकी गति ?
    गरज उठते जब मेघ,
    कौन रोक सकता विपुल नाद ?
  • मुझसे मिलने को कौन विकल ?
    मैं होऊँ किसके हिट चंचल ?
  • एक बात पूछँ – (उत्तर दोगे ?)
    तब कैसे सीखा डसना ………..
    विष कहाँ पाया ?

उपमा अलंकार और उदाहरण

‘उप’ का अर्थ है – ‘समीप से’ और ‘माँ’ का तौलना या देखना|

‘उपमा’ का अर्थ है – एक वस्तु दूसरी वस्तु को रखकर समानता दिखाना जाती है, तब वहाँ उपमा अलंकार होता है |

साधारणतया, उपमा के चार अंग होते है-

  1. उपमेय : जिसकी उपमा दी जाय, अर्थात जिसकी समता किसी दूसरे पदार्थ से दिखलाई जाय |
    जैसे – कर कमल-सा कोमल है | इस उदाहरण में ‘कर’ उपमेय है |
  2. उपमान : जिससे उपमा दी जाय, अर्थात उपमेय को जिसके समान बताया जाय |
    उक्त उदाहरण में ‘कमल’ उपमान है |
  3. साधारण धर्म : ‘धर्म’ का अर्थ हिअ ‘प्रकृति’ या ‘गुण’| उपमेय और उपमान में विघमान समान गुण को ही साधारण धर्म कहा जाता है | उक्त  उदाहरण में ‘कमल’ और ‘कर’ दोनों के समान धर्म है – कोमलता |
  4. वाचक : उपमेय और उपमान के बीच की समानता बताने के लिए जिन वाचक शब्दो का प्रयोग होता है, उन्हें ही वाचक कहा जाता है | उपर्युक्त उदाहरण में ‘सा’ वाचक है |

उपमा अलंकार के उदाहरण : 

  • नील गगन-सा सांत ह्रदय था हो रहा |
  • मुख बाल-रवि सम लाल होकर ज्वाल-सा बोधित-हुआ |
  • मखमल के झूल पड़े हाथी-सा टीला |
  • तब तो बहता समय शिला – सा जम जाएगा |

रूपक अलंकार और उदाहरण 

जब उपमेय पर उपमान का निषेध-रहित आरोप करते है, तब रूपक अलंकार होता है | उपमेय में उपमान के आरोप का अर्थ है – दोनों में अभिन्नता या अभेद दिखाना | इस आरोप में निषेध नहीं होता है |

जैसे –  “यह जीवन क्या है ? निर्झर है |”

रूपक अलंकार के उदाहरण : 

  • मैया ! मैं तो चन्द्र खिलौना लैहों |
  • चरण-कमल बंदौ हरिराई |
  • राम कृपा भव-निसा सिरानी |
  • प्रेम-सलिल से द्वेष का सारा मल धुल जाएगा |

उत्प्रेक्षा अलंकार और उदाहरण

जहाँ उपमेय में उपमान के संभावना का वर्णन हो, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है |

उत्प्रेक्षा के वाचक पद (लक्षण) : यदि पंक्ति में ज्यों, मानो, इव, मनु, जनु, जान पड़ता है – इत्यादि  मानना चाहिए की वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार का प्रयोग हुआ है |

जैसे – सखि ! सोहत गोपाल  गुंजन की माल |
बाहर लसत मनो पिए दावानल की ज्वाल ||
यहाँ  उपमेय ‘गुंजन की माल’ में उपमान ‘ज्वाला’ की संभावना प्रकट की गई  है |

उत्प्रेक्षा अलंकार के उदाहरण : 

  • नील परिधान बिच सुकुमारि
    खुल रहा था मृदुल अधखुला अंग,
    खिला हों ज्यों बिजली के फूल
    मेघवन बीच गुलाबी रंग |
  • पदमावती सब सखी बुलायी |
    जनु फुलवारी सबै चली आई ||
  • सोहत ओढ़े पीत पट, स्याम सलोने गात |
    मनो नीलमणि सैल पर, आतप परयो प्रभात ||
  • पता भवन ते प्रकट भे, तेहि अवसर दोउ भाय |
    मनु निकसे जगु विमल बिधु, जलद पटल बिलगाय ||

अतिशयोक्ति अलंकार और उदाहरण 

जहाँ किसी बात का वर्णन काफी बढ़ा चढ़ाकर किया जाय, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है |

जैसे – आगे नदिया पड़ी अपार, घोडा कैसे उतरे पार |

राणा ने सोचा इस पार, तब  चेतक था उस पार | |

अतिशयोक्ति अलंकार के उदाहरण

  • बाँधा था विधु को किसने इन काली जंजीरों से
    मणिवाले फणियों का मुख क्यों भरा हुआ है हीरों से |
  • हनुमान की पूँछ में,  लग न पायी आग |
    लंका सगरी जल गई, गए निशाचर भाग |
  • देख लो साकेत नगरी है यही |
    स्वर्ग से मिलने गगन में जा रही |
  • में बरजी कैबार तू, इतकत लेति करोट |
    पंखुरी लगे गुलाब की, परि है गात खरोट ||

अन्योक्ति अलंकार और उदाहरण 

जहाँ उपमान के वर्णन के माध्यम से उपमेय का वर्णन हो, वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है | इस अलंकार में कोई बात सीधे-सादे रूप में न कहकर किसी के माध्यम से कहि जाती है |

जैसे – नहि प्राग नहि विकास इहिकाल |

अली कली ही सौ बंध्यो, आगे कौन हवाल ||

यहाँ उपमान ‘कली’ और ‘भौरे’ के वर्णन के बहाने उपमेय (राजा जय सिंह और उनकी नवोढ़ा नायिका) की और संकेत किया गया है |

अन्योक्ति अलंकार के उदाहरण

  • जिन दिन देखे वे कुसुम, गई सुबीति बहार |
    अब अलि रही गुलाब में, अपत कँटीली डार ||
  • इहि आस अटक्यो रहत, अली गुलाब के मूल |
    अइहें फेरि बसंत रितु, इन डारन के मूल |
  • भयो सरित पति सलिल पति, अरु रतनन की खानि |
    कहा बडाई समुद्र की, जु पै न पीवत पानि |

अपह्नुति अलंकार और उदाहरण 

उपमेय पर उपमान का निषेध-रहित आरोप अपह्नुति अलंकार है इस अलंकार में न, नहीं आदि निषेधवाचक अव्ययो की सहायक से उपमेय का निषेध कर उसमें उपमान का आरोप करते है |

जैसे – बरजत हूँ बहुबार हरि, दियो चीर यह चीर |
का मनमोहन को कहै, नहिं बानर बेपीर |

यहाँ कृष्ण द्वारा वस्त्र फाड़े जाने को बन्दर फाड़ा जाना कहा गया है |

अपह्नुति अलंकार अलंकार के उदाहरण : 

  • नए सरोज, उरोज न थे, मंजू मीन, नहिं नैन |
    कलित कलाधर, बदन नहिं मदनबान, नहिं सैन ||
    यहाँ पहले उपमान का आरोप है, फिर उपमेय का निषेध |
  • यह चेहरा नहीं गुलाब का ताजा फूल है |

व्यतिरेक अलंकार और उदाहरण

इस अलंकार में उपमान की उपेक्षा उपमेय बढ़ा चढ़ाकर वर्ण किया जाता है |

जैसे – जिनके जस प्रताप के आगे | ससि मलिन रवि सीतल लागे |

यहाँ उपमेय ‘यश’ और ‘प्रताप’ को उपमान ‘शशि’ एवं ‘सूर्य’ से भी उत्कृष्ट कहा गया है |

सन्देह अलंकार और उदाहरण

उपमेय में जब उपमान का संशय हो तब संदेह अलंकार होता है |

जैसे – कहुँ मानवी यदि मै तुमको तो ऐसा संकोच कहाँ ?
कहुँ दानवी तो उसमे है लावण्य को लोच कहाँ ?
वन देवी समझू तो वह तो होती है भोली-भाली |

संदेह अलंकार के उदाहरण : 

  • विरह है अथवा यह वरदान !
  • है उदित पुर्णेन्दु वह अथवा किसी
    कामिनी के वदन की छिटकी छटा ?
    मिट गया संदेह क्षण भर बाद ही
    पान कर संगीत की स्वर माधुरी |

विरोधामास अलंकार और उदाहरण 

जहाँ बहार से तो विरोध जान पड़े, किन्तु यथार्थ में विरोध न हो |

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जैसे – 

  • जब से है आँख लगी तब से न आँख लगी |
  • यह अथाह पानी रखता है यह सूखा सा गात्र |
  • प्रियतम को समक्ष पा कामिनी
    न जा सकी न ठहर सकी |
  • आई ऐसी अद्भुत बेला
  • ना रो सका न विहँस सका |

4 thoughts on “अलंकार किसे कहते हैं? अलंकार की परिभाषा, भेद, उदाहरण

  1. बहुत अच्छा ज्ञान है,इस पेज में।
    अलंकार पूरी तरह से समझ आ गया है।
    सजना है मुझे,सजना के लिए
    इसमें यमक अलंकार है।

  2. कनक कनक से सौ गुनी।
    मादकता अधिकाय उ खाए बौराय।
    उ पाए बौराय🤣😅।

  3. पी तुम्हारी मुख बास तरंग
    आज बौरे भौरे सहकार |
    बोर – भौर प्रसंग में-मस्त होना
    आम प्रसंग में-मंजूरी निकलना
    जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय |
    बारे उजियारे

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