April 18, 2024

छंद, छंद की परिभाषा भेद और उदाहरण (छंद किसे कहते हैं?)

छंद, छंद की परिभाषा भेद और उदाहरण (छंद किसे कहते हैं?) : क्या आप छन्द से जुडी जानकारियां हासिल करना चाहते हैं तो इस पोस्ट को अंत तक पढ़ें और जाने छन्द क्या होता है, छन्द की परिभाषा क्या है, छन्द के कितने प्रकार होते हैं और भी कई सारी महत्वपूर्ण जानकारियां हमने आपको इस पोस्ट में उपलब्ध कराई हैं|

छंद, छंद की परिभाषा भेद और उदाहरण (छंद किसे कहते हैं?)

छन्द किसे कहते हैं? इसकी परिभाषा क्या है?

छन्द, उस पघ-रचना को कहते हैं, जो वर्णों अथवा मात्राओं की गणना, यति, गति, क्रम एवं तुक के विशेष नियमों से बँधी हो। अर्थात् जिस कविता में यति तथा गति का नियम हो, चरणों के अंत में समता हो और मात्राओं व वर्णों का रचनाक्रम हो, उसे छन्द कहते हैं|

छन्द के कितने प्रकार हैं?

छन्द के दो प्रकार हैं –

विषय चरण छंद के प्रथम और तीसरे चरणों को विषय चरण कहते हैं।
सम चरण छंद के दूसरे और चौथे चरणों को सम चरण कहते हैं।

छन्द के कितने उपभेद हैं?

छन्द के तीन उपभेद होते हैं:

सम छन्द चारों चरणों के लक्षण जिसमें एक समान हों।
अर्ध सम छन्द जिसके पहले और तीसरे चरण एक से हों और दूसरे एवं चौथे चरण एक से हों।
विषम छन्द जो सम छन्द और अद्र्ध सम छन्द से भिन्न हो।

छन्द को कितने वर्गों में बांटा गया है?

मात्राओं और वर्णों की संख्या के आधार पर छंदों को चार वर्गों में बाँटा गया है:

साधारण छन्द मात्रिक छन्दों में 32 मात्राओं तक के छन्द को ’साधारण छन्द‘ कहा जाता है।
दंडक छन्द 32 मात्राओं से अधिक मात्रावाले छंदों को ‘दंडक छन्द‘ कहा जाता है।
साधारण वृत्त वर्णित वृत्तों में 26 वर्ण तक के वृत्त ’साधारण वृत्त‘ कहलाते हैं।
दंडक वृत्त वर्ण वृत्तों में 26 से अधिक वर्णों के वृत्त को ’दंडक वृत्त‘ कहा जाता है।

छंदोबद्ध रचनाओं की विशेषताएँ

छंदोबद्ध रचनाओं की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं-

  • छंदोबद्ध रचनाएँ सुनने और सुनाने में मजेदार होती हैं
  • छन्दोबद्ध रचनाएँ गेय होने के कारण स्मृति में अधिक दिनों तक बनी रहती हैं अर्थात् शीघ्र ही कंठस्थ हो जाती हैं।
  • छन्दोबद्ध रचनाओं के स्मरण हो जाने पर तार्किक शक्ति बढ़ जाती है।
  • छन्दोबद्ध रचनाओं के स्मरण हो जाने पर तार्किक शक्ति बढ़ जाती हैे।
  • गंभीर विषयों को छन्दों में लिखकर सुगम बनाया जा सकता है।
  • छंद का आधार रहने पर बड़े-बड़े विचारों को कम शब्दों में प्रकट किया जा सकता है।

परिभाषित शब्द

चरण छन्द की हर पंक्ति को ‘चरण‘ या ’पाद‘ कहा जाता है।
मात्रा किसी स्वर के उच्चारण में लगनेवाले समय को ’मात्रा’ कहते हैं।
यति विराम को ही यति कहा जाता है। छन्द पढ़ते समय चरण के किसी खास स्थान पर कुछ देर के लिए विराम होता है, जहाँ ठहरा जाता है। इस ठहरने की क्रिया को ही ’यति‘ कहते हैं।
गति हर छन्द में एक प्रकार का प्रवाह होता है, जिससे उसमें माधुर्य आता है और छन्द लयपूर्ण हो जाता हैं, इस पद-प्रवाह को ही ’गति‘ कहते हैं।
गण तीन वर्णों के समूह को ही ’गण‘ कहा जाता है। वर्णित छंद में वर्णों की गणना इसी गण द्वारा होती हैं। गण के आठ प्रकार होते है:
1. यगण 2. मगण 3. तगण 4. रगण
5. जगण 6. भगण 7. नगण और 8. सगण।

अब हम कुछ प्रमुख छन्दों का अध्ययन करेंगे:

दोहा लक्षण: प्रथम तीसरे पद सदा तेरह मात्रा योग।
पद दूजे चौथे रखें, ग्यारह मात्रा लोग।।
अर्थात् दोे छंद में प्रथम और तृतीय चरणों में तेरह एवं दूसरे तथा चौथे चरणों में ग्यारह-ग्यारह मात्राएँ होती हैं। मात्रा की शर्त होने के कारण यह मात्रिक छंद की श्रेणी में आता है। इस छंद में दूसरे एवं चौथे चरणों का तुक मिलता है।उदाहरण-
मेरी भव बाधा हरौ, ……….. प्रथम चरण
SS II SS IS (13 मात्राएँ)
चौपाई लक्षण: चौपाई सोलह मात्राएँ, जगण हो अन्त नहीं।
सम कल पीछे सम, कल विषम बाद हो विषम।
अर्थात् चौपाई एक मात्रिक सम छंद है। इस छंद के प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। जगण और तगण इसके अंत में नहीं होते। चरण के अंत में गुरु-लघु नहीं होता।उदाहरण –
सुखी मीन जे नीर अगाधा
IS SI S SI ISS (16 मात्राएँ)
सोरठा लक्षण: दोहा उल्टे सोरठा, ग्यारह तेरह मात्रा,
सम चरणों में जगण निषेध
x x x
ग्यारह मात्रा योग, प्रथम तीसरे पद रहे।
तेरह मात्रा लोग, दूजे चौथे पद रखे।।
यह अर्द्ध सम मात्रिक छंद है। यह दोहे का उल्टा होता है। इसके प्रथम एवं तृतीय चरणों में ग्यारह-ग्यारह मात्राएँ एवं द्वितीय-चतुर्थ चरणों में तेरह-तेरह मात्राएँ होती हैं।
इसके सम चरणों में जगण नहीं होता।उदाहरण-
इस भव सागर बीच ………. प्रथम चरण
।। ।। S।। S। (11 मात्राएँ)
रोला लक्षण: रोला ग्यारह तेरह पै यति, पद चैबीस मात्रा धरिये।
अर्थात् रोला में विषम पद में 4+4+3 या 3+3+2+3
और सम पद 3+2+4+4 या 3+2+3+3+2 इस तरह की मात्राएँ होती हैं। यह एक अर्द्ध सममात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। 11 एवं 13 मात्राओं पर यति होती है। यही भी दोहे का उल्टा होता है।उदाहरण:
बाहर आया माल।
S।। SS S। (11 मात्राएँ)
कुण्डलिया लक्षण: कुंडलिया चौबीस मात्रा, दोहा रोला मिला बनाओ।
आदि शब्द हो अन्त, पद दोहा का रोला में लाओ।
अर्थात् एक दोहा और एक रोला मिलाने से य छंद बन जाता है। दोहे का प्रथम शब्द कुंडलिया का अंतिम शब्द होता है। यह विषम मात्रिक छंद है, जिसमें छह पंक्तियाँ होती हैं।
उदाहरण:
या ह्या तो अब बेहया, भए लगी नकेल।
S S S II SIS IS IS iSS
हरिगीतिका (16 + 12 + 28) लक्षण: हरिगीतिका सोलह बारह यति, हो पदांत लघु, गुरू, जहाँ पड़े चैकल होता है जगण निषिद्ध, अन्त रगण हो कर्ण मधुर।
यह एक सममात्रिक छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती है। अंत में एक लघु और एक गुरु होता है।
उदाहरण:
संसार की समर स्थली में धीरता धारण करो।
SS। S ।।S S S SIS SII IS(28)
उल्लाज लक्षण: उल्लाज मात्रा पन्द्रह तेरह यदि दो दल हों चार चरण
अर्थात् इस मात्रिक छन्द में प्रथम एवं तृतीय चरणों 15 तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरणों में 13 मात्राएँ होती हैं।
उदाहरण:
यों किधर जा रहे हैं बिखर कुछ बनता इससे कहीं
S III S IS S III II IIS IIS IS
कवित्त (मनहरण) लक्षण: मनहर धनाक्षरी इकत्तीस वर्ण, आठ आठ आठ सात, यति गुरु अन्त।
यह एक सम वर्णिक छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में इकत्तीस वर्ण होते हैं। 16 एवं 15 वर्णों पर यति होती है। चरणान्त में एक गुरू वर्ण अवश्य रहता है। कवित्त अनेक हैं:
उदाहरण:
अनजान नर किया करता है खोटे काम,
रोग-शेक भोगे, मले हाथ धीर छोड़ता।
अपमान जान, आन, शान धूल मिली देख,
भाग्य कोस, माथा ठोक, आश-दीप तोड़ता।।
बीज वो बबूलों के ही, खेत खूब गोड़ता।
फल पाय कैसे भले, फूल-माल मिले कहाँ,
जिन्दगी में रहा पाप-कंटकों को जोड़ता।।
कवित्त (घनाक्षरी) लक्षण: इसमें भी 31 वर्ण होते हैं। 16वें और 16वें और 15वें वर्णों पर यति होती है। कवित्त में वर्णों के क्रम का कोई बंधन नहीं होता।
उदाहरण:
इन्द्र जिमि जम्भ पर, बाडव सुअम्भ पर, (16 वर्ण)
रावन सदंभ पर रघुकुलराज हैं। (15 वर्ण)
पौन बारि बाह पर, सम्भु रतिनाह पर,
ज्यों सहस्रबाहु पर राम द्विजराज हैं।।
छावा द्रुमदंड पर चीता मृग झुंड पर,
भूषन वितुंड पर, जैसे मृग राज हैं।
तेज तम अंस पर, कान्ह जिमि कंस पर,
त्यों मलिच्छ वंस पर, सेर सिवराज हैं।।
सवैया लक्षण: यह एक वर्णिक छंद है। प्रत्येक चरण में 22 अक्षरों से लेकर 26 अक्षरों तक के छंदो को ‘सवैया’ कहा जाता है। इसके चारों चरणों में तुक मिलता है। मन्तगयंद, दुर्मिल, सुमुखी, किरीट, वीर (आल्हा) आदि इसके अनेक रूप हैं।
उदाहरण:
मन्तगयंद सवैया
या लकुटी अरु कामरिया पर राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहूँ, सिद्धि नवौ निधि को सुख नन्द की गाय चराय बिसारौं।
रसखान कबौं इन नैनन सो ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक हौं कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं।
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