March 29, 2024
pratyay

प्रत्यय की परिभाषा, प्रकार और सभी प्रत्यय के उदाहरण – हिंदी व्याकरण

प्रत्यय की परिभाषा, प्रकार और सभी प्रत्यय के उदाहरण देखिये इस लेख में, शब्द निर्माण में समास, प्रत्यय, और उपसर्ग बहुत महत्वपूर्ण इकाई हैं। यदि आपने समास और उपसर्ग नहीं पढ़ा है तो आप नीचे दिए गए लिंक में समास और उपसर्ग पढ़ सकते हैं। Aapke man me bhi hoga ki pratyay kise kahate hain, pratyay ke prakar, pratyay ki paribhasha, pratyay ke udaharan, pratyay kya hota hai?

हिंदी की सभी कक्षाओं चाहे वह कक्षा 6, 7, 8, 9, 10, 11 या फिर कक्षा 12 हो, प्रत्यय जरूर पूछा जाता है। सरल शब्दों में यहाँ हमने प्रत्यय की परिभाषा दी है और उसके कुछ उदाहरण दिए हैं।

  1. प्रत्यय क्या होते हैं?
  2. प्रत्यय के उदाहरण।
  3. प्रत्यय किसे कहते हैं और कितने प्रकार के होते हैं?
  4. प्रत्यय कैसे पहचाने?

यदि आप हिंदी व्याकरण में प्रत्यय क्या है? जानना चाहते हैं तो यह लेख पूरा पढ़िए। आप 4eno.in को बुकमार्क कर सकते हैं। जिससे की सम्पूर्ण हिंदी व्याकरण आपको एक ही वेबसाइट में मिल जाए।

प्रत्यय : परिभाषा, प्रकार और सभी प्रत्यय के उदाहरण

प्रत्यय किसे कहते हैं?

“जो शब्दांश, शब्दों के अंत में जुड़कर अर्थ में परिवर्तन लाये, ‘प्रत्यय‘ कहलाता है।”

प्रत्यय मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं-

  1. विभक्ति प्रत्यय (परसर्ग)
  2. स्त्री प्रत्यय
  3. कृत प्रत्यय
  4. तद्धित प्रत्यय

1- विभक्ति प्रत्यय (परसर्ग)

संज्ञा, सर्वनाम पदों के साथ ने, को, से आदि प्रत्ययों का प्रयोग होता है। ये कारक-चिह्न हैं। अतः, विभक्ति प्रत्यय’ के नाम से जाने जाते हैं।

संज्ञा से ये प्रत्यय प्रायः अलग रहा करते हैं । ये केवल इस बात का संकेत करते हैं कि उक्त संज्ञा का प्रयोग किस कारक के लिए हुआ है।

जैसे-

रामू ने, मोनू को, लड़कों में आदि।

सर्वनाम के साथ दो तरह की बातें देखी जाती हैं-

(i) किसी सर्वनाम पद के ठीक बादवाले कारक-चिह्न उसमें जुड़ जाते हैं। जैसे-

मैंने, तुमको आदि।

(ii) यदि सर्वनाम पद के बाद दो कारकों के चिह्न रहें तो पहला चिह्न सर्वनाम से जुड़ता है और दूसरा अलग रहता है।

जैसे-

उनमें से, तुममें से आदि।

नीचे कुछ सर्वनामों के रूप दिए गए हैं-

‘मैं’ से बने विभिन्न शब्द: मैंने, मुझे, मुझको, मुझसे, मेरे लिए, मेरा, मेरे, मेरी, मुझमें, मुझपर आदि।

तू/तुू से बने शब्द: तुमने, तुमको, तुम्हें, तुमसे, तुमपर, तुममें, तेरा, तेरे तेरी, तुम्हारा, तुम्हारी, तुम्हारे, तुझे, तुझको, तुझसे आदि।

2 – स्त्री-प्रत्यय

जिन प्रत्ययों के लगाने से स्त्रीलिंग रूप बनाए जाते हैं, उन्हें ही ‘स्त्री प्रत्यय’ कहा जाता है। उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित शब्दों के स्त्रीलिंग रूप लिखें-

(i) ‘ई’ प्रत्यय लगाकर:

उदाहरण-देव + ई = देवी

घोड़ा मामा हिरन
दादा दास पुत्र
काका था रोट
चाचा गया टोपा
नाना चुका अधेला
भतीजा दूधवाला नगर
भांजा होगा मक्खा
लड़का घट पोता
काला चुकौता पिटारा
बकरा चमोटा छुरा
नद एकहरा कुत्ता
फेरा सुन्दर नाला
उसका खाया साला
मेरा तीतर अच्छा
तेरा गधा गीदड़
हमारा टोपीवाला बेटा
तुम्हारा ढलवाँ लँगोट

(ii) ‘इन’ प्रत्यय लगाकर: 

उदाहरण -तेली + इन = तेलिन

धोबी जुलाहा हलवाई
लाला हत्यारा अहीर
कहा चमार ग्वाला
सुनार जामादार नाई
दर्जी बाघ ईसाई

(iii) ‘आ’ प्रत्यय लगाकर:

उदाहरण-सुत + सुता

बल प्रियतम पूज्य
कान्त अनुज अध्यक्ष
आत्मज तनुज पालित
श्याम मुग्ध प्राचार्य
छात्र प्रथम शिष्य

(iv) ‘आइन’ प्रत्यय लगाकर:

उदाहरण-पाठक + पाठिका

ठाकुर बनिया बुझकड़
मिसिर धुनिया बाबू
पंडित जमादार पांडेय

(v) ‘इका’ प्रत्यय लगाकार:

उदाहरण-पाठक + पाठिका

बालक लेखक वाचक
नायक पालक शिक्षक
धावक अध्यापक प्राध्यापक
श्रावक निरीक्षक परिचारक
सेवक वाहक दायक

(vi) ‘वती/मती’ प्रत्यय लगाकर:

उदाहरण-धनवान् + धनवती

बुद्धिमान भगवान् बलवान्
महान् श्रीमान्भागयवान् भगवन्

(ii) ‘इया’ प्रत्यय लगाकार:

उदाहरण-बन्दर + बन्दरिया

इन प्रत्ययों के अतिरिक्त भी अन्य प्रत्यय हैं।

जैसे-

सेठ + आनी = सेठानी
जेठ – जेठानी
देवर – देवरानी
गुरू + आनी = गुरूआनी
मोर + नी = मोरनी
साधु + वी = साध्वी
घट + नी = घटनी आदि ।

बाछा डिब्बा गुड्डा
लोटा कुत्ता टोंटा

3- ‘कृत’ प्रत्यय 

“क्रिया या धातु (क्रिया का मूल रूप) के अन्त में लगनेवाले प्रत्यय को ‘कृत्’ प्रत्यय कहते हैं और इससे बने शब्द को ‘कृदन्त’ कहा जाता है।”

जैसे-

पढ़ना + वाला = पढ़नेवाले

क्रियापद  कृत प्रत्यय  कृदन्त

हिन्दी क्रियापदों के अन्त में कृत् प्रत्ययों के योग से निम्नलिखित प्रकार के कृदन्त बनाए जाते हैं-

(i) कर्तृवाचक कृदन्त: कर्तृवाचक कृदन्त क्रिया करनेवाले का बोध कराते हैं यानी ये कृदन्त प्रायः कर्ता कारक का काम करते हैं।

जैसे-

पीना + वाला = पीनेवाले

कर्तृवाचक कृदन्त बनाने की निम्नलिखित विधियाँ हैं-

(a) क्रिया के सामान्य रूप के ‘ना’ को ‘ने’ करके आगे ‘वाला’ जोड़कर।

जैसे-

पढ़ना + वाला = पढ़नेवाला
देखना + वाला = देखनेवाला
जानना + वाला = जाननेवाला

(b) क्रिया के सामान्य रूप के ‘ना’ को ‘’ करके आगे ‘हार’ या ‘सार’ जोड़कर

जैसे-

जानना + हार = जाननहार
मरना + हार = मरनहार

मिलना + सार = मिलनसार

(c) धातु के आगे अक्कड़, आऊ, आका, आड़ी, आलू, इयल, इया, ऊ, एरा, ऐत, ओड़ा, ऐया, क, वैया आदि प्रत्यय लगाकर

जैसे-

लड़ + आका = अड़ाका
खेल + आड़ी = खेलाड़ी/खिलाड़ी

निर्देश: नीचे दिए गए क्रिया पदों/धातुओं में कोष्ठक में लिखित प्रत्यय जोड़कर कृदन्त बनाएँ-

भूल (अक्कड़) गाना (ऐया) रोना (हारा)
लूट (एरा) भाग (ओड़ा) अड़ना (इयल)
खा (ऊ़) तैर (आक) मर (इयल)

(ii) गुणवाचक कृदन्त: गुणवाचक कृदन्त किसी विशिष्ट गुणबोधक होते हैं। ये कृदन्त आऊ, आवना, इया, वाँ अन्त  वाले होते हैं।

जैसे-

टिकना + आऊ = टिकाऊ
बिक + आऊ = बिकाऊ
सुहा + आवना = सुहावना
लुभा + आवना = लुभावना

(iii) कर्मवाचक कृदन्त: कर्मवाचक कृदन्त कर्मबोधक होते हैं यानी Sentence में object  का काम करते हैं। ये प्रायः औना, ना, नी आदि प्रत्ययों से बनाए जाते हैं।

जैसे-

बिछना + औना = बिछौना
खेल + औना = खिलौना
करना + नी = करनी
पढ़ + ना = पढ़ना

(iv) करणवाचक कृदन्तः वे प्रत्ययान्त जो क्रिया के साधन का बोध कराते हैं।

वे शब्द धातुओं में आ, आनी, ऊ, न, ना, औटी, ई, नी, औना आदि प्रत्ययो के जोड़ने से से बनते है |

जैसे-

कस + औटी = कसौटी
झाड़ + ऊ = झाड़ू

(v) भाववाचक कृदन्त: धातु के अन्त में अ, अन, आ, आई, आन, आप, आवट, आव, आस, आहट, ई, एरा, औती, त, ती, ति, न, नी, ना इत्यादि प्रत्ययों के जोडने से बने शब्द जो भावबोधक हों।

जैसे-
थक + आवट = थकावट   लड़ + आई = लडाई
पढ़ + आकू = पढाकू    बैठ + आ = बैठा
घम + आव = घुमाव

(vi) क्रियाद्योतक कृदन्त: क्रियाद्योतक कृदन्त बीते हुए या गुजर रहे समय के बोधक होते हैं। मूल धातु के आगे ’आ’ अथवा ’या’ प्रत्यय लगाने से भूतकालिक तथा ’ता’ प्रत्यय लगाने से वर्तमानकालिक कृदन्त बनते हैं।

जैसे-

लिख + आ = लिखा
पढ़ + आ = पढ़ा             भूतकालिक कृदन्त
खा + या = खाया
लिख + ता = लिखता
जा + ता = जाता
खा + ता = खाता

नोट : कर्तृवाचक प्रत्ययों से ’संज्ञा’ और विशेषण’ दोनों बनते हैं। गुणवाचक से केवल विशेषण और कर्मवाचक, करणवाचक तथा भाववाचक से सिर्फ संज्ञाओं का निर्माण होता है। क्रियाद्योतक प्रत्ययों से विशेषण तथा अव्यय बनाए जाते हैं।

4 – तद्धित प्रत्यय

क्रिया भिन्न शब्द (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषणादि) में लगनेवाले प्रत्यय को ’तद्धित’ कहा जाता है और इससे बने शब्द को तद्धितान्त’ कहते हैं।’’

जैसे-

मानव   +   ता    =   मानवता
संज्ञा      तद्धित     तद्धितान्त

तद्धित प्रत्यय निम्नलिखित होते हैं-

(i) कर्तृवाचक : कर्तृवाचक तद्धित हैं- आर, इया, ई,  उआ, एरा, एड़ी, वाला आदि | इनके जुड़ने से किसी काम के करनेवाले, बनानेवाले या बेचनेवाले का बोध होता है | जैसे –

सोना + आर = सुनार   दूध + वाला = दूधवाला

(ii) भाववाचक : भाववाचक प्रत्ययों को संज्ञा या विशेषण के साथ जोड़ने से भाव का बोध होता है।
ये प्रत्यय हैं- आ, आई, आस, आयत, आहट, पा, पन, त, ता, त्व, नी, क आदि।

जैसे-

मीठा + आस = मिठास    बच्चा + पन = बचपन

निर्देश: नीचे लिखे शब्दों में सामने दिए गए प्रत्यय जोड़कर भाववाचक तद्धितान्त बनाएँ-

प्रभु + ता कवि + ता आवश्यक + ता
नफीस + त  नफासत अहमक + त = हिमाकत लड़का + पन
तत् + त्व महान् + त्व स्थायी + त्व
लंबा + आई साफ + आया बाप + औती
श्रद्धा + य = श्रद्धेय पतिव्रता + य गुरू + इमा

(iii) ऊनवाचक: ऊनवाचक तद्धित प्रत्यय हैं- आ, इया, ओली, ड, डी, री आदि।

ऊनवाचक प्रत्यय लगाने से वस्तु की लघुता, प्रियता, हीनता आदि का बोध होता है।

जैसे –

कोठा + री = कोठरी (लघुताबोधक)
बाबू = आ = बबुआ (प्रियताबोधक)
बूढ़ी + इया = बुढ़िया (हीनता/अपमानबोधक)

नीचे कुछ ऊनवाचक प्रत्यय से बने ऊँनार्थक तद्धितान्त हैं-

लोटा    :    लुटिया बहू       :      बहूटी माच     :      मचिया
गठरी    :     गठरिया टाँग       :   टँगड़ी बच्चा    :    बचवा
जी         :  जिया साँप     :    सँपोला घोड़ा    :    घोड़वा
बात     :    बतिया टिम     :    टिमकी पलंग     :   पलंगड़ी
ढोलक  :    ढोलकी भाई      :   भैया माँझ      :    मँझोला

(iv) अपत्यवाचक: इस प्रत्यय से आन्तरिक परिवर्तत होता है। इससे बने शब्द माता, पिता, स्थान, वंश आदि का बोध कराते हैं।

जैसे-
रघु – राघव (वंश सूचक)  वसुदेव – वासुदेव (पिता से बना)
गंगा – गांगेय (माता से बना)

कुछ अन्य उदाहरण इस प्रकार हैं-

पितृ     :     पितामह मरूत् :    मारूति वनिता  :    वैनतेय
सुमित्र  :   सौमित्र दशरथ :  दाशरथी मातृ    :    मातुल
मनु      :     मानव पृथा    :    पार्थ दिति    :    दैत्य
विदेह   :    वैदेही कुरू  :  कौरव पांडु   :    पांडव
भगिनी  :  भागिनेय जमदग्नि :  जामदग्न्य अतिथि  : आतिथेय

(v) संबंध वाचक: इनसे संबंध का पता चलता है। ये प्रत्यय हैं- एरा, आल, आला, जा, दान आदि।

जैसे-
ममा   +  एरा   = ममेरा
ससुर  + आल  =  ससुराल
कलम  +  दान  = कलमदान
साँप्   +  एरा   =  सँपेरा
दुकान  +  दार  = दुकानदार
सौत   +  एला   =  सौतेला

(vi) गुणवाचक: गुणवाचक प्रत्ययों के योग से बने शब्द पदार्थ का गुण प्रकट करते हैं।

जैसे-
भूख से भूखा
प्यास से प्यासा
चार से चौथा
झगड़ा से झगडालू
रस से रसीला आदि।

(vii) स्थानवाचक: इ, इया, अना, री, इस्तानी, गाह आदि स्थानवाचक तद्धित हैं। ये स्थान का बोध कराते हैं।

जैसे-
फारस + ई = फारसी
चीन + ई = चीनी
पक + इस्तानी = पाकिस्तानी
पंजाब + ई = पंजाबी
नेपाल + ई = नेपाली
बिहार  + ई = बिहारी

(viii) अव्ययवाचक:  आँ, अ, ओं, तना, भर, यों आदि अव्ययवाचक तद्धित प्रत्यय हैं।

जैसे-
यह + आँ = यहाँ
रात + भर=  रातभर

नोट:  यों तो तद्धित प्रत्यय अनन्त हैं, फिर भी इनके योग से तीन प्रकार के शब्द बनते हैं-

(a) संज्ञा + प्रत्यय = विशेषण

बिहार + ई = बिहारी   ग्राम + ईन  = ग्राम + ईन = ग्रामीण

(b) विशेषण + प्रत्यय = भाववाचक संज्ञा

भला +आई = भलाई  लंबा + आई = लंबाई
मीठा + आस = मिठास

(c) संज्ञा/सर्वनाम/विशेषण + प्रत्यय = अव्यय

आप + स = आपस  कोस + ओं = कोसों

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